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सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज 

हुआ यकायक मुझे अंदेशा 

भेजा उसने कोई संदेशा 

नेह नीर बिना  शुष्क हुई थी 

देह प्रीत बिना  रुष्ट हुई थी 

लिपट पवन  संग  हिय तरु की डारि  हिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

आह्लादित  मन लहका- लहका

प्रीत  उपवन  है   महका- महका  

मिले गले जब भ्रमर औ कलिका   

हया दीप संग  जलती   अलिका    

विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया सिली आज   

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

जाने क्यों ये मन भरमाया 

खुदी  में ढूँढू उसका साया 

इत - उत देखूं लगे वो आया 

झट चौखट  पे दीपक  जलाया 

सागर मन मध्य मौजों की खुशियाँ रिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

*****************************************

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 2:50pm

आदरणीया राजेश जी 

बहुत सुन्दर विरह-मिलन के भावों को संजोया है गीत में ..बहुत बहुत बधाई 

राजेश जी इस गीत को आपने किस मात्रा  गणना पर बाँधा है..

इसमें गेयता कई जगह बहुत बाधित है..

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 2:05pm

प्रिय संदीप गीत पसंद आया जानकार हर्षित हूँ उत्साह वर्धन हेतु बहुत- बहुत आभार। 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 15, 2013 at 1:50pm

वाह वा आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
क्या सुंदर गीत रचा है आपने
वाह
एक एक बंद मे वियोग के बाद मिलन का हर्ष उत्कर्ष मे है
बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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