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सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज 

हुआ यकायक मुझे अंदेशा 

भेजा उसने कोई संदेशा 

नेह नीर बिना  शुष्क हुई थी 

देह प्रीत बिना  रुष्ट हुई थी 

लिपट पवन  संग  हिय तरु की डारि  हिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

आह्लादित  मन लहका- लहका

प्रीत  उपवन  है   महका- महका  

मिले गले जब भ्रमर औ कलिका   

हया दीप संग  जलती   अलिका    

विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया सिली आज   

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

जाने क्यों ये मन भरमाया 

खुदी  में ढूँढू उसका साया 

इत - उत देखूं लगे वो आया 

झट चौखट  पे दीपक  जलाया 

सागर मन मध्य मौजों की खुशियाँ रिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 5:05pm

आदरणीय  लक्ष्मण जी आप सही कह रहे हैं  इन मेलों में ऐसे गीतों की बहार रहती है ऐसा ही कोई लोक गीत सुना था जिसकी धुन पर ये लिखा गया आपकी आत्मीय टिपण्णी उत्साह वर्धन करती है स्नेह बनाए रखिये हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 5:03pm

आदरणीय  प्रदीप कुमार कुशवाह जी आपकी आत्मीय टिपण्णी उत्साह वर्धन करती है स्नेह बनाए रखिये हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 5:01pm

श्याम नारायण वर्मा जी आपकी प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 5:00pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक आपको गीत रुचिकर लगा आपको हार्दिक आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 4:40pm

सुन्दर लोक गीत इस मौसम के अनुकूल विशषकर राजास्थान में गणगौर के मेले में जो अभी 12 अप्रैल को ही मनाया गया है 

 गाव गाव से लोग जयपुर आते है झुला झूले है तब घूमते झुण्ड में गाते मदमाते है | बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 15, 2013 at 4:29pm

सबके आँगन में ऐसा हि हो जाये 

बहुत सुन्दर भाव लिए गीत. 

आनंद आ गया 

सादर बधाई. 

आदरणीया राजेश कुमारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 3:11pm

आदरणीया राजेश जी,

लोकगीत में मात्रिक गेयता के क्या नियम होते हैं , मुझे इसकी जानकारी नहीं है..आदरणीया.

Comment by Shyam Narain Verma on April 15, 2013 at 3:08pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए .....................

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 3:07pm

प्रिय प्राची  हार्दिक आभार आपको गीत पसंद आया वास्तव में यह एक लोक गीत की लय  पर आधारित है कहीं कहीं गायन में  मात्रा  को गिराकर पढ़ा गया है जैसे नेह नीर बिना को बिन पढ़ कर गायेंगे ऐसे ही दो तीन जगह है मेरी एक मित्र ने गाकर भी सुनाया था फिर भी आपको कहीं ज्यादा खटक रहा है तो आपके सुझावों का इन्तजार है |

Comment by ram shiromani pathak on April 15, 2013 at 2:57pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुन्दर भाव !हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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