बेशक उसका जन्म हुआ है
मंदिर में स्थापित देवताओं को
दूर से प्रणाम करने के लिए
बेशक उसका जन्म हुआ है
मंदिर प्रांगण के बाहर से
टुकुर-टुकुर ताकने के लिए
बेशक उसका जन्म हुआ है
अपनी वर्तमान दुर्दशा के लिए
खुद को ज़िम्मेदार मानने के लिए
बेशक यदि वो नही पहुंचे
तो सफल नही हो सकता
उनका कोई विशिष्ट आयोजन...
बेशक यदि वह नहीं जाए
तो भरपेटो के पैसों से बना
इतना सारा भोग-प्रसाद
फिर कौन खाए....
जाने क्यों वो
अपनी दुर्दशा का कारण
समझ नहीं पाता है
और उनके भव्य आयोजनों को सफल बनाने
सपरिवार भूखे पेट,
पहुँच ही जाता है....
Comment
अनवर जी,
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जाने क्यों वो
अपनी दुर्दशा का कारण
समझ नहीं पाता है
और उनके भव्य आयोजनों को सफल बनाने
सपरिवार भूखे पेट,
पहुँच ही जाता है....//
कितना सच कहा है आपने!
विवेकानन्द जी ने भी कहा था कि हम जिनकी सेवा करते हैं,
हमें उनका आभारी होना चाहिए क्यूँकि उन्होंने हमको सेवा
करने का सुअवसर प्रदान किया है..
आपकी कविता की प्रतीक्षा रहती है।
सादर,
विजय निकोर
वाह ! बहुत सुंदर ,anwar suhail जी
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