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अंतर्द्वंद्व // गणेश जी "बागी"

ठगती है,
बार बार,

अंतरात्मा,
आश्वासनों से,
ठीक हो जाएगा,
सब ठीक हो जाएगा,
एक अंतर्द्वंद्व,
सत्य असत्य,
दिल दिमाग़ के मध्य,
नही डिगेगा,
कभी नही डिगेगा,
चलते जाना है,
सत्य के मार्ग पर,
जो घटित होना है,
हो जाय,
कौन अमर यहाँ,
कोई नही,
कोई भी तो नही,
फिर डर कैसा,
उस अहंकार से,
जो क्षण भंगुर है,
चल हट !
चलने दे,
कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख
डर के आगे,
जीत है |

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : ईलाज / गणेश जी बागी

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 11:22pm

आदरणीय कुशवाहा जी, आपका आशीर्वाद मिला और क्या चाहिए, आपका आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 11:20pm

प्रिय केवल प्रसाद जी, रचना अच्छी लगी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, आभार आपका | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2013 at 11:19pm

प्रिय संदीप भाई सराहना हेतु हृदय से आभार |

Comment by अशोक कत्याल "अश्क" on April 13, 2013 at 10:25pm

आदरणीय गणेशजी बागी जी, 

बहुत ही सुन्दर रचना ,

जब थाप पड़े , जब तान खिंचे , गूँजे मधुर संगीत हे ,
मत हार मुसाफिर , जाग ज़रा , डर के आगेजीत हे ;

बधाई स्वीकारें।

सादर,

Comment by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 9:27pm

वास्तव में डर के आगे जीत है इसलिए निरंतर अग्रसर ही रहना है। गुरूवर बधाई आपको।
कुछ टाइपिंग की गलतियां हैं सर उन्हें सुधार लीजिए। आशा है आप अन्यथा न लेंगे।
सादर!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2013 at 8:45pm

जी हाँ 

दर के आगे जीत ही तो है. 

भय समाप्त हो जाये तो व्यक्ति अजेय ही है 

बधाई आदरणीय बाग़ी सर जी 

सादर अभिवादन के साथ 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 13, 2013 at 8:41pm

आदरणीय गणेशजी बागी जी, ’कार्य पथ पर बढ़ने दे,
वो सामने देख
डर के आगे,
जीत है।’ अतिसुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 13, 2013 at 8:37pm

आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम

बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने 

डर के आगे जीत है 

सुन्दर रचना हेतु बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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