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तुम और तुम्हारी यादें

तुम और तुम्हारी यादें .. दिल से जाती ही नहीं ...
कई बार चाहा तुम चले जाओ..
मेरे दिल से .. मेरे दिमाग से ...

हर मुमकिन कोशिश कर के देख लिया ..
पर नाकाम रहे ...
कभी कभी सोचते हैं ..ऐसा क्या है हमारे बीच ...
जिसने हमें बांध कर रक्खा है ..
हमारा तो कोई रिश्ता भी नहीं ..

फिर क्या है ये ...?
"लेकिन नहीं" हैं न ..हमारे बीच एक सम्बन्ध ..
एहसास का सम्बन्ध ..
ये क्या है ..नहीं बता सकती मैं ..
एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं ...
उन्हें तो सिर्फ महसूस किया जाता है ...

सालों बीत गए ...
पर लगता है जैसे कल ही की बात है ..
तुम और मैं
मैं और तुम
कभी जुदा हुए ही नहीं ....

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Comment

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Comment by Ajay Singh on November 21, 2010 at 8:20pm
तुम और तुम्हारी यादें .. दिल से जाती ही नहीं ...
कई बार चाहा तुम चले जाओ..
मेरे दिल से .. मेरे दिमाग से ...

हर मुमकिन कोशिश कर के देख लिया ..
पर नाकाम रहे ...
अनीता जी -- बिल्कुल सही "
किसी चीज़ को याद करना तो अपने वस में होता है लेकिन भूलना नही .और जो दिल में बस जाए उसे तो भूलना असंभव सा ही होता है
Comment by Raju on November 21, 2010 at 1:01pm
Anita Jee aapke pahle blog e liye badhayi............

aapne bahut hi badhiya kavita likha hai..

एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं ...
उन्हें तो सिर्फ महसूस किया जाता है ...

bilkul sahi kaha aapne....eehsaso ko srif mahsus kiya ja sakta hai
mujhe bahut achhi lagi aapki ye kavita ......

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 20, 2010 at 7:51pm
मन को कोमलता से सहलाती हुई बहुत sundar kavita|
Comment by Pankaj Trivedi on November 20, 2010 at 7:14pm
Bahut hi sundar- sarahaniy.... badhai
Comment by DEEP ZIRVI on November 19, 2010 at 9:47pm
swagtm

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 19, 2010 at 7:03pm
ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर आपके पहले ब्लॉग का बहुत बहुत स्वागत है, अनीता जी मैं पूर्व मे आपकी भोजपुरी रचनायें पढ़ चूका हूँ जो बेहद खुबसूरत और बुलंद ख्यालों से भरी होती है, आज पहली बार मैं आपकी एक बेहतरीन हिंदी कविता पढ़ कर अभिभूत हूँ , बहुत सुंदर , बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु बधाई स्वीकार कीजिये |

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2010 at 7:02pm
//एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं ...
उन्हें तो सिर्फ महसूस किया जाता है ...//.
वाह वाह अनीता जी कितने मासूम और कोमल से ख्यालातों को कलमबंद किया है आपने ! ओबीओ पर आपकी पहली कविता बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित है, भविष्य में भी आप इसी तरह की स्तरीय रचनायों के साथ इस मंच की शोभा बढाती रहेंगी, मुझे इस बात का पूरा विशवास है ! ओबीओ में आपका बहुत बहुत स्वागत है !

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