कारोलीन एक छोटा सा गाँव . यह उन्नीस सौ साठ की बात है . हमारे पड़ोस में एक औरत अपने
छः साल के बेटे के साथ रहने आयी . वह बहुत झगड़ालू थी . वह आये दिन किसी न किसी से लड़ाई करती रहती . वह जब भी किसीको निशाना बनाती अपने बेटे से कहती जाओ उसे पत्थर से
मारो . वह परित्यक्ता थी, अकेली थी , इसीलिये लोग कुछ नहीं कहते और उससे हर सम्भव दूरी बनाये रखते . लोगों की चुप्पी को वह कायरता समझ बैठी .
उसके घर के समीप एक बड़ा सा मैदान था . शाम के वक्त हम सभी गाँव के बच्चे उसमें खेलने जाते थे. उसका बेटा भी वहाँ आता था . वह बहुत ही उद्दण्ड था . एक तो हमारे खेल में अपनी टाँग अड़ाता. हम जब कुछ कहते तो अपनी माँ से हमारी शिकायत करता . वह हमें गाली देने लगती .
‘’ बड़े लोगों के छ्छूंदर बच्चे अभी मज़ा चखाती हूँ ‘’ वह पत्थर लेकर हमारे पीछे दौड़ती और अपने बेटे से भी कहती - ‘’ इन सबका सर फोड़ दो . ‘’ मेरा एक नन्हा सा दोस्त तो बुरी तरह से घायल
भी हो गया था . उस औरत ने इतना हंगामा किया जैसे कि हम लोग ही दोषी हों . इस घटना के बाद उस मैदान से हमारा नाता टूट गया. हम बहुत दुखी हुए . मन मसोस कर हम अपनी पढ़ाई में डूब गये .
समय अपनी चाल से चलता रहा . हम बड़े हो गये . अच्छी नौकरी करने लगे . वह औरत सीनियर सिटिज़ेन हो गयी . उसे ओल्ड एज का पेंशन मिलने लगा . उसका बेटा बेहद आलसी और आवारा
हो गया . शराब और गांजे की लत लग गयी . एक दिन लड़के ने अपनी माँ से पैसा माँगा . उसने
पैसे देने से इंकार कर दिया और बेटे से कहा – ‘’ क्या तुम अरखी के बने हो ? और लड़कों को देखो
कैसे काम करते हैं . अगर पैसा चाहिये तो जाओ तुम भी कुछ कमाओ . मैं तुम्हें एक फूटी कौड़ी नहीं
दूँगी .’’
लड़का था बहुत गुस्सैल . वह अनाप शनाप गाली बकता हुआ घर से बाहर निकल गया और एक बड़ा सा पत्थर उठाकर अपनी माँ के सर पर दे मारा . वह वहीं ढेर हो गयी .
---- कुंती
(मॉरिशस की एक सच्ची घटना पर आधारित. मौलिक व अप्रकाशित रचना)
Comment
कुछ अजीब सी अनुभूति हुई, इस रचना (लघुकथा) को पढ़ कर. मैं आदरणीय नादिर ख़ान साहब के कहे का अनुमोदन करता हूँ. जो हम बोते हैं वही काटते हैं.
सादर
इसिलिए तो कहावत है,बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय ..
मात पिता को अच्छी सीख देती रचना के लिए बधाई स्वीकरें आदरणीया सादर
लक्ष्मण जी ,सप्रेम नमस्कार . इंसान के जीवन में कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटती है जो आजीवन उसे याद रहता है . उन्ही घटनाओं
में से एक है .आपकी नज़र पड़ी इस केलिये बहुत बहुत धन्यवाद.
बच्चे कि प्रथम गुरु माँ ही होती है, उसी कर उसपर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है | अगर माँ ने सही संस्कार नहीं दिए, तो बच्चे
कि गलतियों का खामियाजा एक दिन माँ बाप को ही भुगतना पड़ता है | "चोर को क्या चोर कि माँ को पकडो |" अच्छी
लघु कथा, बधाई
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