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दॊ सवैया (मत्तगयंद) हॊली संदर्भ मॆं

दॊ सवैया (मत्तगयंद) हॊली संदर्भ मॆं
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1)
रंग बिरंग गुलाल लियॆ सखि, ताकत झाँकत गैल हमारी !!
संग दबंग लफंग लियॆ कछु, आइ गयॊ अलि छैल-बिहारी !!
मॊहन माधव मारि दई तकि, जॊबन बीच  भरी पिचकारी !!
भूल गई सुधि लाजनि तॆ सखि,भीगि गई रँग कॆशर सारी !!

2)
अंग अनंग उमंग  उठी सखि, भंग मतंग करैं किलकारी !!
हूक उठी हिय कूक उठी जस, नागिन-नाग भरैं फुसकारी !!
टूट रहॆ प्रति अंग सखी सुनु, छूटि रही मुख तॆ सिसकारी !!
लाज लिहाज भुलाइ गई जब,बाँहि गही कसि कै वनवारी !!

कवि - राज बुन्दॆली
३०/०३/२०१३
 

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on March 31, 2013 at 11:30am

आदरणीय राज बुन्देली साहब बेहद सुन्दर सवैया प्रस्तुत किया है आपने, हार्दिक बधाई मित्रवर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 31, 2013 at 4:59am

लाज लिहाज भुलाइ गई जब,बाँहि गही कसि कै वनवारी !!

बहुत ही सुन्दर!

Comment by vijay nikore on March 30, 2013 at 11:05pm

राज जी,

 

अति मनमोहक !

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 30, 2013 at 9:39pm

वाह राज बुंदेली जी  मन मुग्ध हो गया इतने सुंदर सवैया पढ़ कर क्या चित्र खींचा है आपने हार्दिक बधाई आपको इस उम्दा प्रस्तुति पर |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 30, 2013 at 5:21pm

बहुत सुन्दर सर जी .......................दोनों ही छंद लाजवाब हैं बहुत बहुत बधाई आपको जय हो


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 30, 2013 at 2:14pm

होली की ठिठोली के रस में रचे बसे लालित्यपूर्ण सवैयों के लिए हार्दिक बधाई आ. कवि राज बुन्देली जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 30, 2013 at 1:40pm

मेरे छोटे से सुझाव को यथोचित मान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, राज भाईसाहब.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 30, 2013 at 1:29pm

"Laxman Prasad Ladiwala जी भाई साहब आपका स्नेह मिला यह मेरा सौभाग्य है,,,इस स्नेह हेतु दिल से आभार आपका,,,,,,,,,,,"

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 30, 2013 at 1:24pm

आदरणीय ,,,, Saurabh Pandey जी,,,, प्रणाम,,,,, प्रणाम,,,,, प्रणाम,,,, आपको,,,,आपका स्नेह मिला तो मुझे और कई गुना ऊर्जा मिली,,,,आपने जो सुधार बताया है ,,,मैने मेरी मूल प्रति मे कर लिया है,,,,,,,,,,,,,बहुत बहुत आभार इस स्नेह के लिये,,,,,,,,,,पुन: प्रणाम,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 30, 2013 at 12:45pm

आपके सवैयाप्रयास में अतिशुद्ध से कम की अपेक्षा स्वीकार्य ही नहीं अब, राज भाई. 

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है.  पहिले सवैये में फाग-धावा और दूसरे में फाग-सम्पन्नता बहुत सुन्दर ढंग से निखरी है. विशेषकर दूसरे सवैये पर बार-बार बधाई. सटीक बिम्बात्मक प्रयोग हुआ है जहाँ गर्व लज्जा से सकाम संलग्न होता है. इस लालित्य-भाव हेतु ढेरों बधाइयाँ.

एक बात :  ’अँग अंग’ के स्थान पर प्रति अंग किया जाय तो शिल्प और भाव दोनों सधे होंगे.

बधाई व शुभकामनाएँ.

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