For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शब-ए-अमावस को चिढ़ाने कल निकला था चाँद
काली चादर ओढ़कर भी कितना उजला था चाँद

खूब कोशिशों पर भी कुछ समेट ना पाया आसमाँ
सुबह होते ही बुलबुले सा फूटकर बिखरा था चाँद

दिखती है दरिया में कैद आज तलक परछाई
उस रोज़ कभी नहाते वक़्त जो फिसला था चाँद

क्या पता रंजिश थी या जमाने का कोई दस्तूर
रोज़ की तरह आज भी सूरज निगला था चाँद

दोनों जले थे रात भर अलाव भी और चाँद भी
तेरे लम्स के पश्मीने में भी खूब पिघला था चाँद

कहीं रात की महफ़िल तो कहीं तारों का डेरा था
फिर क्यों इतना गुमसुम इतना अकेला था चाँद

कल रात किसी आँगन में ओस तो पड़ी होगी
कल रात किसी से बिछड़कर खूब रोया था चाँद

'ताहिर' जब कभी अकेला बैठा माँ बहुत याद आई
जिसके हाथों रोटी का बस इक निवाला था चाँद


(शब-ए-अमावस= अमावस्या की रात; लम्स= स्पर्श, पश्मीना= शाल या ऊनी चादर/ एक प्रकार का महँगा ऊन)

Views: 447

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विवेक मिश्र on November 17, 2010 at 1:28am
वीरेन्द्र जी, आशीष जी और राणा भाई- आप सभी की टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 14, 2010 at 8:41am
विवेक भाई ....चाँद को देखने का अलग ही नजरिया है आपका...कमाल के ख्याल...बहुत खूब..बधाई हो|
Comment by आशीष यादव on November 11, 2010 at 12:08am
khubsurat prastuti.
दोनों जले थे रात भर अलाव भी और चाँद भी
तेरे लम्स के पश्मीने में भी खूब पिघला था चाँद

कहीं रात की महफ़िल तो कहीं तारों का डेरा था
फिर क्यों इतना गुमसुम इतना अकेला था चाँद
Comment by Veerendra Jain on November 10, 2010 at 11:57pm
.All Blog PostsMy BlogEdit Blog PostsAdd a Blog Post. पिघला था चाँदPosted by विवेक मिश्र 'ताहिर' on November 9, 2010 at 12:23pm
Send Message View विवेक मिश्र 'ताहिर''s blog
.

शब-ए-अमावस को चिढ़ाने कल निकला था चाँद
काली चादर ओढ़कर भी कितना उजला था चाँद

खूब कोशिशों पर भी कुछ समेट ना पाया आसमाँ
सुबह होते ही बुलबुले सा फूटकर बिखरा था चाँद

दिखती है दरिया में कैद आज तलक परछाई
उस रोज़ कभी नहाते वक़्त जो फिसला था चाँद

bahut hi khubsurat gazal hai Vivek ji...bahut bahut badhai...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service