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खाब की ताबीर होने से रही

खाब की ताबीर होने से रही
ऐसी भी तकदीर होने से रही


पहले सी झुकती नहीं तेरी नज़र
अब कमां ये तीर होने से रही

चाहे जितने रंग भर लो खाब के
पानी मे तस्वीर होने से रही

कर लो पैनी ' फ़िक्र' जितनी तुम कलम
जौक, ग़ालिब, मीर, होने से रही 

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Comment by vikas rana janumanu 'fikr' on November 18, 2010 at 10:46am
shukriyaa prtaap bhayee, aur tahir bhayee

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 14, 2010 at 8:53am
चाहे जितने रंग भर लो खाब के
पानी मे तस्वीर होने से रही

फिक्र भाई एकदम जदीद ख्याल...
Comment by विवेक मिश्र on November 11, 2010 at 1:44pm
/चाहे जितने रंग भर लो खाब के
पानी मे तस्वीर होने से रही/
जनाब 'फिक्र' साहब, ये शे'अर ख़ासा पसंद आया. ख़याल उम्दा हैं, पर आपकी ग़ज़ल इसी रवानी के ४-५ शे'अर और मांगती है. दाद कबूल करें.

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