==========ग़ज़ल==========
बहरे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ
वजन ==221 /2121/ 1221 /212
हमसे मिला निगाह महज मुस्कुरा दिए
आँखों में कुछ हसीन से सपने सजा दिए
करते हो हमसे इश्क या हमदर्द हो मेरे
पूछा कभी तो शर्म से पलकें झुका दिए
वादा किया था साथ निभाने का उम्र भर
रुखसत के वक़्त आ के वो वादा निभा दिए
नज़राना क्या दें आपको ठहरे गरीब हम
चाहत निभाने अश्क के मोती लुटा दिए
तोड़े सभी रिवाज सभी रश्म तोड़ दी
सारे उसूल इश्क की खातिर मिटा दिए
फुरकत के वक़्त आपसे आईं यूँ गर्दिशें
मिटती नहीं वो दीप तो कितने जला दिए
संदीप पटेल "दीप"
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वाह संदीप भाई... सुन्दर गजल !
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