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थर्रा गये  मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर   

जब  कर्ण  में पड़ी  मासूम की चीत्कार 

सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते  

बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग  की दीवार 

रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु  समंदर 

दिलों में  नफरतों के नाग रहे फुफकार

उतर  आये   दैत्य देवों  की भूमि पर 

और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार  

 दर्द के  अलाव में  जल  रहे हैं जिस्म                  

 नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार                                                                            

 देख  खतरे में नारियों  का अस्तित्व          

 सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार 

*************************************

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Comment

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Comment by vijay nikore on December 26, 2012 at 4:53pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

वेदना, वेदना, वेदना सब ओर....

अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 26, 2012 at 4:43pm

कल ही ऐसे प्रस्तर  ह्रदय माता पिता से सामना हुआ, जिन्होंने बेटी जन्मने पर उसका चेहरा नहीं देखा और माँ ने बच्ची को तीन दिन तक दूध भी नहीं पिलाया.

और एक ऐसी माँ से सामना हुआ जो अपनी दूसरी बेटी जन्मने पर बहुत रोई, और अपनी बच्ची को अपनी जेठानी के दो वर्ष के बेटे से बदल लिया.

कैसी विडम्बना है, कैसा आधुनिक समाज है यह, कैसी प्रगतिशीलता है ...

सिर्फ दर्द है, जिसे बयान करने के लिए शब्द भी कम हैं.

 

प्राची जी, मन बहुत दुखी हुआ यह पढ़ कर .. हूक-सी अटकी हुई है ... कि जैसे शोक में हूँ ।

विजय निकोर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 26, 2012 at 4:08pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

सादर अभिवादन 

मुहीम में आपका योगदान सराहनीय है. साथ हूँ मैं भी 

रचना हेतु आधे. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 26, 2012 at 2:14pm

प्रिय अरुण काश यह संवेदन शीलता सभी के दिलों में हो तो ये सब लिखने की आवश्यकता ही नहीं होगी बहुत बहुत हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 26, 2012 at 2:13pm

प्रिय महिमा श्री हार्दिक आभार आपका आप ने सच कहा यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो ये टिक टिक वक़्त भी नहीं देगी सँभलने का 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 26, 2012 at 1:56pm

आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार आपका ,हर संवेदन शील हृदय दुहाई दे रहा है आज 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 26, 2012 at 1:49pm

आदरणीया सर्व प्रथम आपको नमन, नारी ह्रदय के वेदना का जो दृश प्रस्तुत किया है पढ़कर मन अशांत हो गया है, बहुत सी घटनाएं सामने आके खड़ी हो गई हैं और जवाब मांग रही हों आगे कुछ और कह पाना असंभव है.

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2012 at 1:25pm

आदरणीया प्राची जी .. किसी कारणवश नारीशक्ति वाले महोत्सव में शामिल नहीं हो पायी थी . अभी मैंने आपके द्वारा उदृत आपकी रचना पढ़ी , बहुत ही भायी / बहुत ही उत्कृष्ट और मन को झंझकोर देनेवाली अभिवयक्ति ...

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2012 at 1:19pm

उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर

और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार

दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म

नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार

देख खतरे में नारियों का अस्तित्व

सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार

आदरणीया राजेश दी ..नमस्कार
वाकई में सर्वनाश की टिक टिक सुनाई देने लगी है . जिस तरह से कन्या भूर्ण हत्या . बलात्कार . मानसिक और अनेको प्रकार की शारीरिक प्रताडना दिनों दिन बढ़ता जा रहा है .. वो दिन दूर नहीं जब प्रकृति अपने तरीके से सबक सिखाएगी ही ..
आपके मन का दुःख और आक्रोश हम सब समझ सकते है और शामिल भी है ..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 26, 2012 at 12:59pm

उतर  आये   दैत्य देवों  की भूमि पर,और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार  

 दर्द के  अलाव में  जल  रहे हैं जिस्म,  नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार ।

बहुत मार्मिक चित्रण पर हमारा मन उद्वेलित हो कह रहा है -

जिस्म के हर कतरे पर फुट रहा आक्रोश, नारी मन में म्रत्यु करे पुकार 

सद्पुरुष फटी आँखे सब देख करता रोष, बिन नारी के नैया डूब रही मझधार ।

-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला, जयपुर  

 

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