For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या होगा इस देश का भविष्य

हमने सुना है कि शिक्षक कि नजर में सभी बच्चे एक सामान होते है लेकिन इस कहानी को पढने के बाद शायद ये बात गलत ही साबित होती नजर आती है l

यह कहानी एक छोटे से गॉव कि है जहाँ एक विधालय में सभी जाति के बच्चे पढ़ते थे और हर एक कक्षा में लगभग ६०-८० बच्चे हुआ करते थे l उसमे रामू और उसके कुछ दोस्त जो निम्न जाति के थे, पढ़ते थे l इसी स्कुल में एक अध्यापक बाबु जो उच्च जाति से सम्बन्ध रखता था सदा निम्न जाति के बच्चो को हीन दृष्टि से देखता था और व्यव्हार से कंजूस व् लालची था l वह स्कूल में कम पढाई कराता और जब परीक्षा का समय आता था तो जल्दी से जल्दी अपने कोर्स को पूरा कराने कि कोशिश करता ताकि कोई उसके काम पर ऊँगली ना उठा सके l इसी वजह से जो बच्चे होशियार या समझदार होते वह तो कुछ समझने में सक्षम होते और जो थोड़े से काम समझदार होते वे पीछे ही रह जाते और अक्सर परीक्षा में फेल हो जाते इससे बाबु को उन्हें ट्यूशन पढने के लिए उकसाना सरल हो जाता l वह चाहता था कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कुल के बाद उसके पास ट्यूशन पढ़े l जो उच्च जाति के और सक्षम परिवार से सम्बन्ध रखते थे वो बच्चे तो ट्यूशन पढ़ लेते थे लेकिन जो निम्न और गरीब परिवार से थे तो उनके लिए पढना बहुत ही कठिन  हो जाता था l अत: ये बात बाबु को अच्छी नहीं लगती थी इसलिए वह अक्सर रामू और उसके दोस्तों को सजा देने से बिलकुल भी नहीं चुकता था और कभी कभी तो छोटी सी गलती के लिए जैसे काम पूरा ना करने के लिए या फिर स्कुल में देरी से आने के लिए डंडे से पिटाई (पहले जैसा हम सभी जानते है कि डंडे से पिटाई भी कि जाती थी और डंडा भी ऐसा कि लगते ही लगता था कि हाथ ही टूट जायेगा फिर इन बच्चो को इसे सहन करना ही पड़ता था) या फिर दो दो घंटे मुर्गा बनाना उसकी नियति बन गई थी फिर स्कुल खत्म होने के बाद सभी निम्न जाति के बच्चो को रोक लेना उनसे कपडे और अपने नहाने के लिए नल से पानी भरवाना, घर पर अपनी पत्नी के कामो में हाथ बटाने के लिए भेज देना उसका रोजाना का काम था l

उसकी इन ही वजह से बच्चो का अधिकतर समय उसके कामो में गुजर जाता और बच्चो कि पढाई को समय ही नहीं मिल पाता क्योंकि वह स्कुल का हेड मास्टर था तो किसी कि हिम्मत भी नहीं होती कि कोई अपने परिवारवालों को उसकी शिकायत करें क्योंकि सभी बच्चो को फेल होने का डर था डर क्या अक्सर होता भी यही था l अगर निम्न जाति के १० बच्चे एक कक्षा में थे तो केवल एक दो को ही वह पास करता नहीं तो सभी बच्चे फेल उनके पास एक ही तरीका था या तो वह ट्यूशन पढ़े और उसके कामो का चुपचाप करते रहे नहीं तो एक ही कक्षा में दो दो तीन तीन साल लगाये l क्या इसी को अध्यापक कहते है ? क्या ट्यूशन इतना जरुरी है कि स्कूल में पढाई करने कि जरुरत ही नहीं रह गई है? क्या यही अध्यापक एक अच्छे की पहचान हैं ? क्या ऐसे ही अध्यापक हमारे देश के विकास में सहायक है क्या हम ऐसे ही अध्यापको के हाथो में अपने देश कि डोर दे सकते है ? स्कुलो में भी ये छुआछुत आखिर कब तक अगर ऐसा ही चलता रहा तो क्या होगा हमारे देश का भविष्य इसका अनुमान हम खुद लगा सकते है l

Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 18, 2012 at 11:24am

फूलसिंह जी

                 सादर आपने जाति भेदभाव कि मानसिकता को बहुत अच्छे से उजागर किया है. बड़े सामूहिक प्रयास ही इस पर अंकुश लाने में सक्षम रहे हैं सरकारी नीतियों का पालन कौन कराये यह बड़ी समस्या है?

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:12pm

प्रदीप जी नमस्कार...

आपका बहुत बहुत धन्यवाद........

फूल सिंह

Comment by PHOOL SINGH on December 12, 2012 at 3:11pm

जवाहर जी नमस्कार....

आपका बहुत बहुत धन्यवाद........

फूल सिंह

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 12, 2012 at 4:13am

प्रिय फूल सिंह जी, नमस्कार!

आपकी कहानी पढकर मुझे भी अपने प्राथमिक स्कूल की याद आ गयी ! वहाँ जातिगत भावना तो नहीं थी, पर बच्चों से अपना काम कराना और बेवजह दंड देना, खुद विलंब से आना, खुद अनियमित रहना  एक अध्यापक बाबु की आदत थी! संभव है आज भी कुछ स्कूल और अध्यापक ऐसे हों! आपको बधाई! 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 11, 2012 at 1:16pm

आपकी पीड़ा से सहमत 

आदरणीय , सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service