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ग़ज़ल - फकत शैतान की बातें करे है

वादा किया था कि जल्द ही कुछ पुरानी ग़ज़लें साझा करूँगा,,,
  एक ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ...



फकत शैतान की बातें करे है ?
सियासतदान  की बातें करे है !

अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,
वो रौशनदान की बातें करे है |

नहीं है रीढ़ की हड्डी भी जिसमें,
पतन उत्थान की बातें करे है |

अगर वो चुप रहे, उसकी खमोशी,
किसी तूफ़ान की बातें करे है |

वो पहले खुल्द की बातें करे फिर,
सरो सामान की बातें करे है |

ग़ज़ल कहना तो पहले सीख 'वीनस',
कहाँ 'दीवान' की बातें करे है |

(१२- १० - २०११)

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on December 13, 2012 at 1:15am

जनाब नादिर ख़ान
भाई डॉ. सूर्या बाली
भाई
SANDEEP KUMAR PATE
भाई संदीप द्विवेदी
जनाब लतीफ़ ख़ान
sri Saurabh Pandey
sri
Er. Ganesh Jee "Bagi"
sri
Laxman Prasad Ladiwala
भाई अरुन शर्मा "अनन्त"

आप सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ....
इस ग़ज़ल के खातिर आपने जो मुहब्बत लुटाई है उससे आशआर चमकने लगे हैं
दुआओं में मुझे याद रखें

- आपका वीनस

Comment by नादिर ख़ान on December 12, 2012 at 10:43am

अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश, 
वो रौशनदान की बातें करे है |

नहीं है रीढ़ की हड्डी भी जिसमें, 
पतन उत्थान की बातें करे है |

वाह वीनस भाई  वाह  ..

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 8, 2012 at 10:46pm

अगर वो चुप रहे, उसकी खमोशी, 
किसी तूफ़ान की बातें करे है॥

वाह वीनस भाई क्या खूब कहा है |...बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है॥

मक्ते से आज के हालात को बयां कर दिया है ॥दिली दाद कुबूल करें !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 8, 2012 at 4:16pm

आदरणीय वीनस सर जी सभी ने बहुत कुछ कह डाला शेष कुछ भी न छोड़ा
तो बस इतन ही के नतमस्तक हूँ आपके विचारों और सोच के सामने
इतनी सालीन कहन के साथ इतने ऊँचे भाव
बस क्या बात है ये स्नेह यूँ ही बना रहे हम नौसीखियों पर भी
सादर प्रणाम

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 7, 2012 at 7:51pm

लाजवाब-पुर्शबाब शानदार-जानदार.. क्या कमाल किया है भाई आपने! शुरू से अंत तक एक प्रवाह में पढ़ गया! दो शे'र जो विशेष पसंद आये कोट कर रहा हूँ..

अँधेरे से न पूछो उसकी ख्वाहिश,
वो रौशनदान की बातें करे है -- क्या शानदार मुज़ाहिरा है ग़ज़ल में विरोधाभास अलंकार का..

ग़ज़ल कहना तो पहले सीख 'वीनस',
कहाँ 'दीवान' की बातें करे है -- ग़ज़ब का मक़ता.. 'अधजल गगरी छलकत जाए' टाइप शाइरों के लिए बेहतरीन सबक़ ..

बधाईयां भाई..

Comment by लतीफ़ ख़ान on December 7, 2012 at 7:35pm

जनाब वीनस भाई साहब,, उम्दा और बेहतरीन अशआर से सजी इस ग़ज़ल के लिए तहे-दिल से मुबारक बाद कुबूल कीजिये ,,, एक तवील अरसे के बाद सुकून-दिल का अहसास कराती इस ग़ज़ल का शुक्रिया,,खासकर यह दो शेर तो रिवायती शायरी के नायाब मोती हैं,,,

[१]  अगर वो चुप रहे,उस की खमोशी ,

      किसी  तूफ़ान  की बातें  करे  है ! ,,,,बहुत ख़ूब  ,,,

[२]  वो पहले खुल्द की बातें करे फिर ,

      सरो - सामान  की बातें  करे  है !,,,,रिवायती शायरी की बहतरीन मिसाल ,,,,, मक्ता भी शानदार है ,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2012 at 2:45pm

सियासतदान और शैतान ! यानि मतला इस बात की ताक़ीद कर रहा है कि ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. और उनकी बातें करनेवाला निहायत दोयम दर्ज़े का है. कहन का कमाल है कि ये भाव मिसरों से जबर्दस्त ढंग से उभर कर आते हैं.

सारे अश’आर समृद्ध हैं और उनका इशारा सटीक है.  जैसे, अंधेरे से न पूछो..  . में ’अंधा क्या मांगे दो आँखें, धत्त्तेरेकी..’ का भाव है. और यह शेर अंतर्निहित ’धत्तेरे की..’ के कारण अन्यतम हो गया है.

इसी तरह,  नहीं है रीढ़ की..  के जरिये हवा में मुट्ठियाँ भाँजने वालों या सोशल-साइट्स के कुल्हड़ में हुल्लड़ मचाने वालों की अच्छी खबर ली गयी है.

लेकिन जिस शेर ने मुझे अपनी कहन और अपनी बारीकी से चौंकाया है वह वो पहले खुल्द की..  है. इस शेर को तो मैं हो जाना कहूँगा. बहुत-बहुत ऊँचे मेयार का शेर बन पड़ा है, वीनस जी. बड़ी-बड़ी (?) और आदर्श कोंचती बातों से माहौल और सोसायटियों में एकबारग़ी छा जाने वाले किन्तु अंदर से निहायत खोखले लोगों की दशा पर इतना गहरा तंज शेर कहने वाले की जागरुकता और संवेदनशीलता के साथ-साथ समाज की कारगुजारियों पर पैनी नज़र रखने की उसकी खुसूसी आदतों के कारण ही संभव है.

इस सुन्दर और घोषित रूप से सालभर पुरानी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई कह रहा हूँ. बहुत खूब !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2012 at 1:05pm

//नहीं है रीढ़ की हड्डी भी जिसमें,
पतन उत्थान की बातें करे है//

बहुत ही गहरे भाव, वीनस भाई सभी अशआर अच्छे लगे , दाद कुबूल करें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 7, 2012 at 11:48am
सुन्दर गजल प्रस्तुत करे है 
वादा कर तू निभाया करे है ।
हार्दिक बधाई तो दिया करे है,
गजल की समझ मुझ से परे ही ।
समझ नहीं पर चर्चा करे है 
आदत है उसे मजबूर करे है ।
गजल लिखना तो सीख पहले 
गजल में तू टिपण्णी करे है  । 
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2012 at 11:20am

वाह वीनस भाई सुबह-2 आपकी ग़ज़ल पढ़कर मानो मैं तरोताजा हो गया सभी के सभी अशआर लाजवाब हैं दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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