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बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे
तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे

रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया
रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे


घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे

रोज-ए-महसर की ख़बरें इस कदर छाने लगी
बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 10:41pm

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे
इस शेर ने तो कमाल कर दिया है आदरणीय संदीप जी. सुन्दर गजल पर बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2012 at 3:45pm

जी आदरणीय वीनस जी
मैंने गलती की
क्यूंकि में
रोज- ए- महसर इन तीनों को प्रथक प्रथक पढ़ रहा था
रोज फिर ए  फिर महसर
आपका एक बार पुनः  ह्रदय से आभारी हूँ
सुधार कर लिया है
इस प्रकार से
क्या अब सही है 

रोजे महसर की खबर तो इस कदर छाने लगी
बंजरों में लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2012 at 3:44pm

आदरणीया डॉ प्राची जी , आदरणीय पियूष जी सादर प्रणाम
आपने ग़ज़ल को पसंद किया और अपने बेशकीमती विचार रखे
इसके लिए मैं आपका तहे दिल से आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 9:42am

रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया 
रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे... बहुत नाज़ुक भावों नें शब्द लिए है, वाह 

घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी 
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे.....क्या खूब शब्द चित्र उकेरा है मंत्रियों द्वारा निरीक्षण की औपचारिकता का , बहुत खूब!

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा 
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे....बहुत सुन्दर शेर.

हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल केलिए संदीप जी.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 7, 2012 at 8:20am

लाजवाब संदीप भाई जी, पूरी गज़ल के साथ-साथ इस शेर के लिए विशेष दाद कबूलें भाई...

छोड़ आये थे जिसे हम "दीप" बन के बेबफा
याद उसने जब किया हम हिचकियाँ लेने लगे

बेशक ये हासिले-गज़ल है !

Comment by वीनस केसरी on December 7, 2012 at 1:39am

भाई इजाफत इस्तेमाल करने में कोई दिक्कत नहीं है मगर आपने इजाफत करते हुए मात्रा गलत ली है
अर्थात गलत वज्न पर बाँध दिया है
रोज-ए-महसर  का सहीह वज्न के लिए लेख माला में सम्बन्धित लेख पढ़ें --

क्रम ७ - अलिफ़-वस्ल, इज़ाफत और वाव-ए-अत्फ़

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2012 at 3:50pm


आदरणीय नादिर साहब , आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी , आदरणीय वीनस सर जी , आदरणीय लक्षमण सर जी, आदरणीय अरुण जी , आदरणीया महिमा जी
सादर प्रणाम आप सभी को
आपने मेरी ग़ज़ल को वक़्त दिया और हौसलाफजाई की इसके लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

तत आदरणीय वीनस जी
क्या इस शेर में इजाफत का उपयोग नहीं कर सकते हैं
रोज-"ए"-महसर

कृपया मार्गदर्शन करें ताकि मेरी तकनीक में कुछ और इजाफा हो

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 3:45pm

घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी
चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे... ::))

नमस्कार संदीप जी .. बहुत बढ़िया // बधाई आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2012 at 11:48am

वाह मित्र वाह उम्दा ग़ज़ल कुछ अशआर तो माशाल्लाह लाजवाब हैं, बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2012 at 10:56am
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति की लिए हार्दिक बधाई स्वीकारेश्री संदीप कुमार पटेल जी 
राज भी दे खूब  दिलासा  घर बसाने का चुनावों पर 
घुम्मकड़ बनजारा भी अपना आसरा यूँ बसाने लगे  ।  

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