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जीवन में अधिकार मिले कम-

मत्तगयन्द सवैया

नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।

कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।

सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।

जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई ।।

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Comment by रविकर on October 17, 2012 at 10:15am

आभार आदरेया रेखा जोशी जी -
आदरेया राजेश दीदी
आदरणीय सौरभ जी
आदरणीय अशोक कुमार जी
बहुत बहुत आभार -

Comment by रविकर on October 17, 2012 at 10:12am

आदरणीय सौरभ जी से ही इस मनोहारी छंद का प्रथम परिचय प्राप्त हुआ था-
कुंडलियों और दोहों के अतिरिक्त अन्य छंद की रचना डरते हुवे ही करता था -

अब आत्मविश्वास बढ़ पाया है |
आभार आदरणीय-

Comment by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 10:05am

अति सुंदर छंद पर हार्दिक बधाई रविकर जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:24am

आदरणीय रविकर जी

               सादर नमस्कार, नारी के मनोभाव को मुखरित करता सुन्दर सवैया. बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 8:46pm

रविकर भाई बहुत शानदार छंद रचा है बहुत बहुत बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 4:22pm

मान रखा ’कवि नाम’ सखा प्रति पंक्ति हिं नारि-कुमारि जियो है
शब्द चुनें अरु वाक्य सधे, यह मर्म सुकर्महिं साध दियो है.. .
सादर नाम कहूँ, रवि भ्रात, कि छंद विधा सुखदा जु कियो है
खूब सधा परियास हुआ, मनभावन अर्थ बहाव लियो है.. .

सौरभ सर की किरपा मिलती, यह छंद रचा डरता डरता |  ....??

Comment by रविकर on October 16, 2012 at 1:45pm

लक्ष्मण जी सनदीप सखा खुश हो रवि स्वागत है करता |
मैं बस एक बना जरिया शुभ रंग छटा प्रभु ही भरता |
सौरभ सर की किरपा मिलती, यह छंद रचा डरता डरता |
ओपन बुक्स सहायक है, जब काव्य कला नित नीखरता ||

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 12:37pm

आदरणीय रविकर सर जी सादर प्रणाम
बहुत बढ़िया साधा है आपने ये प्रयास
जबरदस्त बहुत बहुत बधाई इस उत्तम सोच हेतु

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 16, 2012 at 11:58am

सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई  - मन भावन पंक्ति बधाई रविकर भाई 

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