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 1.गुरु ज्ञान बाँटते रहे, ले सके वही लेत,
   भभूत समझे तो लगे, वर्ना वह तो रेत |

  
 2.अमल करे तबही बढे, गुरु सबके हीसाथ,
   करम सेही भाग्य बढे, भाग्य उसीके हाथ |

 3. नेता भाषण में  कहें,जाति का नहीं भेद,
   जो फोटू दिखलाय दो, तुरत करेंगे खेद |

4. भेद गरीब अमीर का , नहीं करे करतार,

   करतारही जब न करे,हमको क्यों दरकार |

 5.पुत्र से अगर वंश चले, बेटी भी हकदार,              
 बिन जमींन नहि कुछ उगे, सोंचो तो सरकार |                                                                    
     

 6.बेटा-बेटी सम भले, सम इनके अधिकार
  भेद भाव न फिर करो,बेटी करे गुहार |
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2012 at 12:45pm

गुरु ज्ञान दोहे पसंद करने पर आपका शुक्रिया श्री फूल सिंहजी

Comment by PHOOL SINGH on September 26, 2012 at 12:17pm

लक्ष्मण जी.......प्रणाम

गुरु के महत्त्व को आपने बखूबी समझाया है.....बहुत ही सुंदर....

फूल सिंह

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 24, 2012 at 4:31pm

धरती बिन क्या उग सके, सोचो तो सरकार ? आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

 बिलकुल अच्छा संशोधन सुझाया है आपने, हार्दिक आभार 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 3:41pm

//जमींन बिना न उग सके, सोंचो तो सरकार |  //

धरती बिन क्या उग सके, सोचो तो सरकार ?

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 24, 2012 at 3:38pm

मार्ग दर्शन हेतु हार्दिक आभार अदार्निय सौरभ पाण्डेय जी, जगण (लघु गुरु लघु) पर अभी पकड़ कम है | 

ज़मीन की जगह जमीं और न को ना कर देना ठीक होगा क्या ? 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 1:12pm

आपका प्रयास बेहतर है, लक्ष्मणजी. किन्तु,  छंद शिल्प सतत प्रयास और अध्ययन मंगता है.  आपका प्रयास भला लगता है. अध्ययन भी करते चलें. धीरे-धीरे गेयता के अनुसार आपके छंद सधने लगेंगे.

ध्यातव्य : जगण (लघु गुरु लघु) दोहा छंद के प्रथम और तृतीय चरण में त्याज्य है. जमींन शब्द इसी श्रेणी का है.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 24, 2012 at 5:19am

हार्दिक आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी, आप जैसे साहित्य और दोहा विशेषग्य से प्रमाण पत्र मिल गया, मेरा प्रयास सफल हो गया भाई जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2012 at 7:16pm

पुत्र से गर वंश चले, बेटी भी हकदार,              
बिन जमींन नहि कुछ उगे, सोंचो तो सरकार | 

बढ़िया प्रयास है लडिवाला जी, बधाई स्वीकारें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2012 at 12:03pm

दोहे पसंद कर होंसला बढ़ने हेतु हार्दिक आभार भाई श्री हरविंदर सिंह लबाना जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2012 at 12:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी, उत्साह एवेम सहयोग यूँ ही बनाये रखे |

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