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पढ़ती हैं विज्ञान को--------!!!

चाँद पर रख दिए हमने कदम
विकास कर रहे हैं हर दम
पहुंचे हैं आज यहाँ हम सदियों में.
पर आज भी पूजा जाता है चाँद
मेरे गांव/शहर की गलियों में ,
और चौथ का व्रत रखती हैं महिलाएं
खुश करने को अपने सुहाग को,
बी. एस.सी करती है पढ़ती हैं विज्ञान को,
पर आज भी दूध पिलाती है नागपंचमी पर नाग को.
चाहे जितना कर लो तुम विकास वो अब भी मिथकों पर है मरती .
उनके लिए आज भी शेष नाग पर टिकी है धरती !!!!!

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Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 1:35pm

विचार मंथन की इस प्रक्रिया से मैं अभिभूत हूँ ------रचना का उद्देश्य सार्थक हुआ लगता है.पुनश्च आप सभी का शुक्रिया.

Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 1:32pm

आदरणीय  रेखा जी शुक्रिया आपका .स्नेह बनायें रखें .

Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 1:27pm

शुक्रिया  आपके इस बयान से गलत फहमी दूर हो गई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 1:19pm

थोडा पढने में उल्टा इसीलिए लगा क्यूंकि मैंने विज्ञान की दृष्टि से लिख दिया था
मैं तो आपके विचारों से सहमत हूँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 1:18pm

आपने बाकई जो पहलू प्रस्तुत किया है वो विज्ञान की दृष्टि से सही नहीं है
इस पंक्ति में स्वीकारोक्ति है साहब

Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 1:15pm

प्रिय संदीप जी रचना पर अपनी प्रतिक्रियाएं देने के लिए आभार  .रचना में जो विचार मैंने व्यक्त किये है उनका सम्बन्ध हमारे उस समाज से है जो आज भी आँख बन्द करके परम्पराओं का अन्धानुकरण कर रहे हैं. मैंने यहाँ कुछ ही मिथकों का जिक्र किया है परन्तु आम जीवन में ऐसे अनेकों मिथक आपको मिल जायेगें जिनका कोई सार्थक और वैज्ञानिक औचित्य नहीं है उदहारण के लिए आज भी हमारा  समाज  सूर्य गृहण और चन्द्र गृहण जैसी खगोलीय और प्राकृतिक घटनाओ को देविय और ईश्वरीय चमत्कार मानकर पूजन करता हैं.आप कृपया बताएं कि मैंने कौनसा ऐसा पहलू प्रस्तुत कियाहै जो आपको वैज्ञानिक दृष्टि से सही नहीं लगा ???

Comment by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 1:14pm

नवल जी ,अति सुंदर प्रस्तुति,मै राजेश जी से पूर्णतया सहमत हूँ ,विज्ञान से रहस्य की बहुत परतें खोली है और आगे नई नई खोजों  में लगा हुआ है लेकिन विज्ञान से परेभी एक और विज्ञान है जिससे हम अभी भी अँधेरे में है ,कई प्रशन अभी अनसुलझे है ,विचारणीय रचना ,बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 22, 2012 at 12:55pm

आदरणीय इस रचना में आपका व्यक्तिगत दर्द है या सामाजिक ????
बस यूँ ही पूछ लिया किन्तु आपने बाकई जो पहलू प्रस्तुत किया है वो विज्ञान की दृष्टि से सही नहीं है
किन्तु ये वही विज्ञान है जो आजकल भूत पिशाच पकड़ने के यन्त्र बना रही है
और जब वो पहलू सच हो गया जो दिख ही नहीं रहा है तो फिर ये क्यूँ नहीं ????
संभवतः उनके शेष नाग अभी दिख नहीं रहे हों
विज्ञान का कोई प्रयोग ये भी सिद्ध कर दे की सच में धरती उनके फन पे टिकी है
या ये भी के चाँद सूरज और तारों के बिना जीवन असंभव है या ये भी जीवन में सुख दुःख की तरह अभिन्न अंग है
तो आखिर हुए न ये पूज्यनीय
बहरहाल मेरी बधाई आपकी सम्यक वैज्ञानिक दृष्टि के लिए
जो विज्ञान पढ़ रहे हैं या विज्ञान से सरोकार रखते हैं उन्हें इनके मूल का वास्तविक स्वरूप पता होना  चाहिए

Comment by Naval Kishor Soni on August 22, 2012 at 11:04am

सम्मानीय राजेश कुमारी जी, सौरभ जी, गणेश जी एवं अलबेला खत्री जी आप सभी का हृदय से आभार. आपके मूल्यवान कमेंट्स पढ़कर इस तरह के विषयों पर लिखने हेतु  और हिम्मत बढ़ेगी मेरी. तहेदिल से शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 22, 2012 at 9:59am

बहुत बढ़िया लिखा है प्रिय नवल वैज्ञानिक युग  में भी हम पुरातन मान्यताओं को मानते चले आ रहे हैं बहुत सही कहा क्यूंकि हमारे देश में इन मान्यताओं की जड़ें इतनी गहरी हैं जो आसानी से नहीं हिलेंगी पर अंधविश्वास करना भी गलत है भगवान् एक आलौकिक शक्ति के अस्तित्व को भी नकार नहीं सकते पर आस्था के नाम पर ढकोसले करना आडम्बर करना इससे मैं भी असहमत हूँ -------बहुत अच्छी विचारणीय प्रस्तुति 

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