For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ

यहाँ आजाद है हर सख्स थोपा जा रहा है क्यूँ
लडूं अधिकार की गर जंग रोका जा रहा है क्यूँ

हुआ है आज का हर आदमी अब तो सलामत-रौ
बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ

नहीं बेफिक्र है लोगो जिसे हालात है मालुम
जवाँ फिर आज मूंदे आँख सोता जा रहा है क्यूँ

सलीका इश्क करने का कभी आया नहीं लेकिन
जिसे देखो दिलों में आग बोता जा रहा है क्यूँ

खुदी मसरूफ है फिर भी शिकायत वक़्त से करता
न जाने फूल नफ़रत के पिरोता जा रहा हैं क्यूँ

ग़मों में मुस्कुराने की अदा में जो हुआ माहिर
ख़ुशी के फिर बहाने ढूंढ रोता जा रहा है क्यूँ

यकीं करता नहीं है यार पर वादे हजारों ले 
वजूदे इश्क खो पहचान खोता जा रहा है क्यूँ

खराबी से नहीं तौबा किया जब "दीप" उसने तो
बहा के चश्म-गंगा पाप धोता जा रहा है क्यूँ 


संदीप पटेल "दीप"

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 8, 2012 at 8:35pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल बहुत बहुत बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 12:15pm

वाह संदीप भाई मज़ा आ गया बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल क्या बात है

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 8, 2012 at 11:15am

आदरणीया रेखा जी सादर प्रणाम
आपकी प्रातक्रिया से एक उत्साह सा जगा है
कुछ और बेहतर करने का
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये आपका बहुत बहुत आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 8, 2012 at 11:14am

आदरणीय योगी जी सादर नमन
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
अपना ये स्नेह बनाये रखिये यूँ ही

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 8, 2012 at 11:13am

आदरणीया सीमा जी सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
अपना ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 8, 2012 at 11:11am

आदरणीय अशोक जी सादर नमन
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
आपको लेखन पसंद आया लिखना सफल हुआ
स्नेह बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 8, 2012 at 11:10am

आदरणीय उमाशंकर सर जी सादर प्रणाम
ये सब आप मित्रों के असीम स्नेह की ही परिपाटी है जो मैं थोडा बहुत लिख पाता हूँ
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार
स्नेह बनाये रखिये ...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 8, 2012 at 11:09am

आदरणीय भ्रमर सर जी सादर नमन
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Rekha Joshi on August 8, 2012 at 10:44am

ग़मों में मुस्कुराने की अदा में जो हुआ माहिर 
ख़ुशी के फिर बहाने ढूंढ रोता जा रहा है क्यूँ ,अति सुंदर भाव ,बहुत बहुत बधाई संदीप जी 

Comment by Yogi Saraswat on August 8, 2012 at 9:52am

यकीं करता नहीं है यार पर वादे हजारों ले 
वजूदे इश्क खो पहचान खोता जा रहा है क्यूँ

सुन्दर अल्फाजों से सजी हुई ग़ज़ल !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service