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सावन   नभ  पर    छा गया,  हरियाए    सब  खेत/

हरियाली     छा   ने   लगी,  ओझल   बालू    रेत//

ओझल   बालू    रेत,     हरित    होते  सब  जंगल/

कल कल नदी का शोर, बहे झरने भी निर्मल//

सुन कोयल की  तान, नाचे शिखी भी उपवन/

‘अशोक’समझ न पाय, लाय मद कैसे सावन//

( कुछ त्रुटियां संज्ञान में आने पर सुधार के पश्चात पुनः पोस्ट किया है.)

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Comment by Ashok Kumar Raktale on August 9, 2012 at 8:43am

आदरणीय बागडे साहब

                             सादर, सुन्दर प्रतिक्रया. आपका स्नहे पाकर प्रसन्नता हुई. धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 9, 2012 at 8:42am

आदरणीय मिश्रा जी, आ. अरुण शर्मा जी आपने कुंडलियाँ पढ़ी,पसंद की. बहुत बहुत शुक्रिया.

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 11:55am

बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ अशोक जी , क्या बात

Comment by AVINASH S BAGDE on August 8, 2012 at 10:27am

‘अशोक’समझ न पाय, लाय मद कैसे सावन//...koun samajh paya

अशोक कुमार जी.सुन्दर कुण्डलियाँ

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 7, 2012 at 10:26pm

अशोक कुमार जी बहुत सुन्दर चित्रण किया है मनोरम है

बहुत बहुत बधाई

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2012 at 10:16pm

आदरणीय संदीप जी, रेखा जी, गौरव जी आपको कुंडलिया पसंद आयी जानकार प्रसन्नता हुई. आभार.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 7, 2012 at 11:06am

वाह रक्ताले सर...अति सुन्दर कुण्डलिया....बधाई.....

Comment by Rekha Joshi on August 6, 2012 at 12:16pm

अशोक जी ,बहुत सुंदर कुंडलिया ,मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 6, 2012 at 10:56am

सुन्दर कुण्डलियाँ बधाई आद. अशोक जी!

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