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कविता - बहती सी गंगा

 कविता - बहती सी गंगा  
 
 
हमने एक नदी को बाँधा
और अब करते हैं
रेत की पुजैय्या
किनारे रुकी नाव की लाश पर !
 
हमने एक बहती नदी को नाला बनाया
उसमें शहर भर के अपशिष्ट डाले
और अब हर शाम अँधेरे में उस काले नाले की आरती उतार
विदेशी अतिथियों की राह तकते है !
 
हमने किताबों में नदी की महत्ता बताई
रामायण और महाभारत से गंगा के किस्से बच्चों को सुनाये
और अब उन बच्चों को
स्वीमिंग पूल में तैरना सिखा कर
ओलम्पिक गोल्ड मेडल पाने की हसरत संजो रहे हैं
सच मुच हम अपनी इच्छाएं विकास के गाल में डुबो रहे हैं !
 
हम दूर देश से टूर पर आये साइबेरिआइ पक्षी
इस   बार पहले सी गंगा को न पाकर दुखी हैं
मगर  ये  प्रण  है अगली  बार हम ओल्गा  से भर भर चोंच  लायेंगे  जल
और भर देंगे  पहले सी पावन  पवित्र   बहती सी गंगा   !!
 
                              - अभिनव  अरुण  
                                  [15052012]
 

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 2:04pm
हम दूर देश से टूर पर आये साइबेरिआइ पक्षी
इस   बार पहले सी गंगा को न पाकर दुखी हैं
मगर  ये  प्रण  है अगली  बार हम ओल्गा  से भर भर चोंच  लायेंगे  जल
और भर देंगे  पहले सी पावन  पवित्र   बहती सी गंगा   !!
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति इन पंक्तियों के मादयम से। दिल के गहरे तल तक छूती हुई रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !
Comment by आशीष यादव on May 17, 2012 at 12:31pm

सच में आज हम आधुनिकिकरण के अन्धाधुन्ध भागदौड़ मे पवित्र नदियों को प्रतिदिन और प्रदूषित कर रहे हैं। सच्चाई यह हो चुकी है कि लोग गङ्गा जैसी पावन नदी मे भी नही नहाते।
गङ्गा जैसी दूषित हो रही नदियो के बारे मे सुन्दर एवँ सामयिक रचना।
बधाई

Comment by MAHIMA SHREE on May 16, 2012 at 9:10pm
हम दूर देश से टूर पर आये साइबेरिआइ पक्षी
इस   बार पहले सी गंगा को न पाकर दुखी हैं
मगर  ये  प्रण  है अगली  बार हम ओल्गा  से भर भर चोंच  लायेंगे  जल
और भर देंगे  पहले सी पावन  पवित्र   बहती सी गंगा  !!

वाह आदरणीय अभिनव जी .. आपने तो बहुत खूबसूरती से इंसानों  औकात बता दी ... सच तो है  पंक्षी प्रकृति के अब भी उतना ही करीब है जितना पहले था . पर हमने तो सूरत ही बदल दी ..


बधाई आपको

 
Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 3:47pm
 श्री संदीप जी रचना पसंद करने और टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आपका !!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 16, 2012 at 3:06pm

behad shaandar rachna ....................kadve sach ko bayaan karti ..................aur maa ganga ke aastitva ko apne hi kaise mitaane ke liye prayash rat hain batati .....waah

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 1:13pm

आदरणीय श्री संपादक महोदय ! आपकी इस सटीक समीक्षा  ने काव्य को नया आयाम दिया है हार्दिक आभार आपका !!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 16, 2012 at 1:07pm

//और अब हर शाम अँधेरे में उस काले नाले की आरती उतार//

बहुत कड़वा सच ब्यान किया है भाई अरुण जी, सच में हम कितने जाहिल हो चुके हैं.

//इस बार पहले सी गंगा को न पाकर दुखी हैं
मगर ये प्रण है अगली बार हम ओल्गा से भर भर चोंच लायेंगे जल//

यह पंक्ति दिल को कचोट ले जाने वाली है, यानि कि बेजुबान पक्षियों को तो चिंता है मगर हम हैं कि अपनी माँ की दुर्गति से गाफिल हुए बैठे हैं. इस सारगर्भित रचना पर मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.  

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 11:25am

दिली रूप से शुक्रिया सुरेन्द्र जी कविता पसंद करने और टिप्पणी करने के लिए !!

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 11:24am

आदरणीया रेखा जी हार्दिक रूप से धन्यवाद !!

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 11:23am

ये यथार्थ चित्रण आपको पसंद आया आभारी हूँ श्री भावेश जी !!

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