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बहुत आभार आदरणीय आशीष जी आपको ये शेर पसंद आया लिखना / कहना सार्थक हुआ !!
बहुत खूब
हैं बेकार मतलब के रिश्ते ,
तेरी याद माँ चाशनी है |
आदरणीय श्री बागी जी एवं श्रद्धेय श्री सौरभ जी हार्दिक आभार आप दोनों का आपने मेरा मार्गदर्शन किया ! अभी बदलाव कर देता हूँ !!
पिसा पटरियों सा हमेशा ,
समस्या मेरी रेल सी है |
भाईजी, आपकी इस जागरुक कोशिश पर हृदय से बधाइयाँ. भाई गणेश जी की सलाह भी उचित प्रतीत होती है.
मेरी जिन्दगी रेल सी है (इस पर जरा विचार करें , शायद रुचे)
आदरणीय श्री सौरभ जी संदर्भित शेर -
पिसा पटरियों सा हमेशा ,
समस्या मेरी रेल सी है |
कैसा रहेगा या कुछ और .. कृपया यथेष्ठ परामर्श दे कर संशोधित करदें , कृतार्थ करें अग्रिम आभार सहित - अभिनव !
भाईसाहब, आपको एक अरसे बाद देख कर बड़ी प्रसन्नता हो रही है. ग़ज़ल के अश’आर अच्छे बन पड़े हैं. बधाई स्वीकारें.
मगर कमाल किया है मतले ने ! वाह ! इनके अलावे जिस अश’आर ने मोह लिया है वह निम्नलिखित है -
लबादे मुखौटे मुलम्मे ,
किसे हम कहें आदमी है |
वैसे कुछ अश’आर पर थोड़ी और मशक्कत और ग़ज़ब ढा देती.
पिसा पटरियों सा हमेशा ,
मेरी मुश्किलें रेल सी हैं |
यहाँ रदीफ़ ही बदल गया है, भाईजी. विश्वास है, देख लेंगे.
रूपक को अपने पसंद किया मैं धन्य हुआ श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी !! हार्दिक आभार आपका |
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