ज्वालाशर छंद
१६ ,१५ पर यति अंत में दो गुरू (२२)
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संकीर्णताओं से बचाती, निष्काम कर्म भावना ही.
हो जायें प्रवृत्त मनुज सभी, अधार हो सदभावना ही.
कर्तव्य का बस बोध होवे,इच्छा न कुछ पाने की हो,
संकल्पना कहती सदा ये,आशा सुधर जाने की हो.
कोई मार्ग खोजें मुक्ति का,आशय जीवन का यही है.
सद्कर्म से सम्भव बने यह,विचार दर्शन का सही है.
कल्याण का है भाव जिसमे,मोक्ष पथ पर वह बढ़ेगा.
सद्कर्म पर जो चल रहे नर,हर कोई गाथा पढ़ेगा.
ना हो अहित मम कर्म से कुइ,परहित हो कुर्बां जवानी.
हमें वास्ता क्या कर्मफल से,सद्कर्म में आये रवानी
शैलेन्द्र कुमार सिंह "मृदु"
Comment
आदरणीय मुकेश सर प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि आभार
आदरणीय सतीश सर प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि आभार
कर्म में यह भावना हो तो कोई बात बने ।
निष्काम हर कामना हो तो कोई बात बने ।
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अत: मेरे निजी मत है कि शिल्प की दृष्टि से यह "बाण सवय्या" छंद के ज्यादा नज़दीक है. .
कल्याण का है भाव जिसमे,मोक्ष पथ पर वह बढ़ेगा.
सद्कर्म पर जो चल रहे नर,हर कोई गाथा पढ़ेगा.
बहुत खूब मृदु जी .... बधाई
आदरणीय प्रदीप सर सादर नमन, प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद
संकीर्णताओं से बचाती, निष्काम कर्म भावना ही.
हो जायें प्रवृत्त मनुज सभी, अधार हो सदभावना ही.
bahut sundar sandesh, adarniy mradu ji, badhai.
आदरणीय छोटू जी प्रोत्साहन हेतु आपका कोटिशः धन्यवाद
आदरणीय ARVIND KUMAR TIWARI जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय मृदु जी निष्काम कृति पढ़ी, आपने बिल्कुल सास्वत सत्य को प्रतिस्थापित किया है अपनी कविता में, हृद्यिक बधाई स्वीकार करें
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