For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तोड़ना जीस्त का हासिल समझ लिया होगा

तोड़ना जीस्त का हासिल समझ लिया होगा
आइने को भी मेरा दिल समझ लिया होगा

जाने क्यूँ डूबने वाले की नज़र थी तुम पर
उसने शायद तुम्हे साहिल समझ लिया होगा

चीख उठे वो अँधेरे में होश खो बैठे
अपनी परछाई को कातिल समझ लिया होगा

यूँ भी देता है अजनबी को आसरा कोई
जान पहचान के काबिल समझ लिया होगा

हर ख़ुशी लौट गई आप की तरह दर से
दिल को उजड़ी हुई महफ़िल समझ लिया होगा

ऐ तपिश तेरी ग़ज़ल को वो ख़त समझते हैं
खुद को हर लफ्ज़ में शामिल समझ लिया होगा
मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से

Views: 407

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by jagdishtapish on September 16, 2010 at 4:28pm
manniya saurabh ji
housla afjai ke liye hradya se aabhari hain ham aapke
wakai bahut gahri soch hai aapki --hamari rachna se bhi adhik achchi lagi aapki panktiyanरज्ज्वाँ भुजङ्गमिव प्रतिभासितं वै--punah punah aabhar aapka --saadar

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 16, 2010 at 2:26pm
यूँ भी देता है अजनबी को आसरा कोई
जान पहचान के काबिल समझ लिया होगा
एकाकी जीवन की व्यथा याफिर मिलने-जुलने की तड़प बेहतरीन ढ़ंग से निखर कर आयी है.

चीख उठे वो अँधेरे में होश खो बैठे
अपनी परछाई को कातिल समझ लिया होगा
बहुत खूब.. बहुत खूब.. रज्ज्वाँ भुजङ्गमिव प्रतिभासितं वै.. बहुत खूब..तपिशजी.
Comment by jagdishtapish on September 16, 2010 at 9:53am
माननीय राना जी --गणेश जी आशीष जी
हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभारी हैं हम आप सभी के ---सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 16, 2010 at 9:24am
बहुत खूब ...बहुत सुन्दर ग़ज़ल...हर शेर उम्दा है|

मै यकीनी तौर पर कह सकता हूँ की इस ग़ज़ल ने आपको मंच पर बहुत बार दाद दिलवाई होगी| बहुत बहुत धन्यवाद|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 16, 2010 at 9:00am
यूँ भी देता है अजनबी को आसरा कोई
जान पहचान के काबिल समझ लिया होगा,
बहुत खूब कहा तपिश सर, स्वयम से सवाल करता शे'र वाकई खुबसूरत है , अच्छी ग़ज़ल निकाला है आपने, शुक्रिया .
Comment by आशीष यादव on September 15, 2010 at 11:49pm
tapish ji pranaam,
bahut achchhi ghazal kahi aapne.
जाने क्यूँ डूबने वाले की नज़र थी तुम पर
उसने शायद तुम्हे साहिल समझ लिया होगा
bahut achchhi lagi yah line.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"    शिकस्त-ए-नारवा     ------------------ रिवाज के विरुद्ध काम, शायरी का एक ऐब…"
15 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  ग़ज़ल — 212 1222…"
19 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
59 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ इस्लाह भी ख़ूब हुई आ अमित जी की"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ रिचा अच्छी ग़ज़ल हुई है इस्लाह के साथ अच्छा सुधार किया आपने"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आपको ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service