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क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही

क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही
खुश्क आँखों में केवल नमी रह गई --


तुझको पाने की हसरत कहीं खो गई
सब मिला बस तेरी एक कमी रह गई |


आँधियों की चरागों से थी दुश्मनी
अब कहाँ घर मेरे रौशनी रह गई |


ना वो सजदे रहे ना वो सर ही रहे
अब तो बस नाम की बन्दगी रह गई |


अय तपिश जी रहे हो तो किसके लिए ?
किसके हिस्से की अब ज़िन्दगी रह गई |

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Comment

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Comment by jagdishtapish on September 19, 2010 at 6:40pm
manniya navin ji जी चुके अपने हिस्से की पहले तपिश---lekin अपने हिस्से की कब ज़िन्दगी रह गई ?kahne kaa aashy ye hai ki ---apne hisse ki pahle ji chuke --baki apne hisse ki ab nahin bachi ---yani ab apne liye nahin aouron ke liye -ji rahe hain ---

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2010 at 10:38am
आदरणीय तपिश सर,अच्छी नज्म पेश किया है आपने, सुंदर है ,

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