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अंतिम क्षण (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

अंतिम क्षण 

अंतिम क्षण मेरे जीवन के

कितने सुहाने होंगे
कोई न होगा साथ हमारे
हम तन्हा ही होंगे
ऐसा नहीं हम इस दुनियां को 
छोड़ के चल देंगे
बज़ूद हमारा मिट नहीं सकता
यहीं कहीं पे रहेंगे 
राख़ को मेरी बहा नहीं सकते
चिता पे मुझको जला नहीं सकते
सौंप दिया है जिस्म-ओ-जाँ हमने
चाहकर भी दफना नहीं सकते
अपनें हो य बेगाने
सबको ही याद आऊंगा
आप चाहो न चाहो आपके 
दिल में बस जाऊंगा 
दिल में बस जा ----
--------
(इस कविता की सत्यता यह है की मैंने अपनी मौत के बाद अपना मृत शरीर एम्स (ऑल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मैडिकल साइंसिस) को दान दे दिया है I  तो कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में तो रहूँगा ही I जो मेरे अपनों मेरे चाहने वालों को यह एहसास दिलाता रहेगा की मेरा बज़ूद इस जमीं पर है और रहेगा Iदूसरा बरसों पहले मैंने एक कविता लिखी थी 'मेरी राख़ को दुनियां वालो गंगा में न बहाना,प्रदूषित  हो चुकी बहुत और उसे न बढ़ाना ' यह साधना टी0 व़ी0 चैनल के लोकप्रिय प्रोग्राम 'कवियों की चौपाल' में भी प्रसारित हुई थी और 'जर्नलिस्ट टुडे नेटवर्क' पर यह मेरी  पहली कविता छपी थी I  इसपर कई लोगों,आलोचकों  नें उंगली उठाई थी,आपत्ति की थी कि डायलाग तो सारे ही मार लेते हैं कोई करके तो  दिखाए I अब कोई यह नहीं कह सकता की कवि झूठ लिखते हैं I)

दीपक शर्मा कुल्लुवी
27 /12 /2011 .
9350078399  

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 3:39pm

LOON KARAN CHHAJER JI

आपका धन्यवाद 
हम तो हमेशा अगली पंक्ति में ही  रहते हैं कोई टमाटर मरे तो सब्जी बना लेंगे और जूता मारे तो  खर्चा बचा लेंगे 
दीपक शर्मा कुल्लुवी
27 /12 /2011 .
Comment by LOON KARAN CHHAJER on December 27, 2011 at 3:27pm

एक चित्रकार ने बहुत सुन्दर पंटिंग बना कर शहर के मध्य में टांग कर निचे लिखकर कहा की इसमे कोई गलती   हो तो वहां  निशान लगायें . कुछ घंटों बाद उसने जब अपनी पंटिंग देखी तो उसका हुलिया ही बदल चूका था . वह बहुत दुखी हुआ की मेरी  पंटिंग में इतनी  गलतियाँ  है , में एक सही कलाकार नहीं बन सकता .उसने अपनी बात किसी सुधिजन के समक्ष रखी उसने उसको सलाह दी की इस बार आप पंटिंग बनाकर  उसी जगह पर लगाओ परन्तु निचे लिखना की इसमे जहाँ गलती लगे उसमे सुधार अवश्य करें .पंटिंग दो दिन शहर के मध्य तंगी रही परन्तु एक भी व्यक्ति ने कोई  सुधार  नहीं किया था . कलाकार को समझाया गया की दोष किसी भी बात में व  किसी में भी व्यकी में निकला जा सकता है परन्तु किसी में सुधार करना बहुत कठिन है.
दीपक जी आपने   बहुत अच्छा निर्णय लिया है अब देखना यह है की कवि सम्मलेन में आप पर फब्तियां कसने वाले क्या निर्णय लव पते है . क्या वो भी आपका अनुकरण करेंगे.
बहुत अच्छी कविता के लिए धन्यवाद .

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 12:05pm
क्या बेकार लिखता है तू .....
दीपक शर्मा कुल्लुवी

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