For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रफ़ी का इक सदाबहार नगमा..............

फिल्म-- हँसते जख्म
गाना-- हां ये माना मेरी जान मोहब्बत सजा है
गायक-- मोहम्मद रफ़ी

तौबा तौबा ये जवानी ये जवानी का गुरूर
इश्क के सामने सर फिर भी झुकाना ही परा
कैसा कहते थे ना आयेंगे ना आयेंगे
मगर दिल ने इस तरह पुकारा तुम्हे आना ही परा

ये माना मेरी जान मुहब्बत सजा है
मजा इसमें इतना मगर किसलिए है
वो इक बेकरारी जो अब तक इधर थी
वोही बेककारी उधर किसलिए है

बहलना ना जाने बदलना ना जाने
तमन्ना मचल के सम्हलना न जाने
करीब और आओ कदम तो बढाओ
झुका दूं ना मैं सर तो ये सर किसलिए है
ये माना मेरी जान मुहब्बत सजा है
मजा इसमें इतना मगर किसलिए है

नज़ारे भी देखे इशारे भी देखे
कई खूबसूरत सहारे भी देखे
नाम क्या चीज है,
इज्जत क्या चीज है सोने चांदी की
हकीकत क्या है लाख बहलाए कोई दौलत से
प्यार के सामने दौलत क्या है

जो मयखाने जा कर नशा गर उठाऊ
तो फिर ये नशीली नजर किसलिए है
ये माना मेरी जान मुहब्बत सजा है
मजा इसमें इतना मगर किसलिए है

तुम्ही ने सवारा तुम्ही ने सजाया
मेरे सुने दिल को तुम्ही ने बसाया
जिस चमन से भी तुम गुजर जाओ
हर कलि पर निखर आ जाये
रूठ जाओ तो रूठ जाये खुदा
और हस दो तो बहार आ जाये

तुम्हारे कदम से है घर में उजाला
अगर तुम नहीं तो वो घर किसलिए है
ये माना मेरी जान मुहब्बत सजा है
मजा इसमें इतना मगर किसलिए है
वो इक बेकरारी जो अब तक इधर थी
वोही बेककारी उधर किसलिए है...........................

Views: 2605

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 9:43pm
रफ़ी साहब की ये कव्वाली आज भी रोंगेटे खड़ी कर देती है|
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 7, 2010 at 12:05pm
dhanybaad ganesh bhaiya,bijay bhaiya aur raju bhai.....raua log ke ee gaana likhal pasand aail ee humra khatir khushi ke baat baa....aage bhi hum likhat rahab....
and ur welcome ishika...collection to bahut saare hain rafi ke lekin bas thoda samay ki kami ke kaaran nahi likh pata hoon lekin fir bhi kosis rahti hai ki adhik se adhik likhu...aage bhi kosis jaari rahegi ki apne busy schedule me se samay nikal kar kuch likhat rahon....
Comment by Raju on April 6, 2010 at 7:56pm
Thankyou Preetam bhaiya for sharing this with us
Comment by ISHIKA MISHRA on April 6, 2010 at 5:50pm
thanks a lot preetam jee.....this song is also one of my favorite....thanks for share with us...
this song is always available in my mobile and lappy also....i hear this nice song daily.....
agar aapke paas aur bhi rafi ke acchhe gaane ho to please yahan post kare....
we r waiting for the next song of rafi...........

Ishika Mishra
Comment by BIJAY PATHAK on April 6, 2010 at 4:51pm
Preetam ji purani yaad taza kai deni , Dhanyabad

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2010 at 8:52am
बहुत सुंदर गीत खोज कर लाये है प्रीतम भाई, ये गीत आज भी जब बजता है तो चलते हुवे कदम ठिठक जाते है और दिल मजबूर हो जाता है की पूरा गीत सुन कर ही आगे बढ़ा जाये, बहुत बहुत धन्यबाद ईस गीत को पोस्ट करने के लिये ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service