221 - 2122 - 221 - 2122
आया है चाट वाला ले कर गली में ठेला
आते ही लग गया है बच्चों का जैसे मेला
अम्मा से पैसे लेके दौड़ी जो बिटिया रानी
सुनकर ही आ गया है चच्ची के मुँह में पानी
भाभी भी हो रहीं ख़ुश भय्या मँगा रहे हैं
खाते नहीं मगर वो सबको खिला रहे हैं
टन-टन तवा बजाता कर्छी से चाट वाला
कहता है आओ बाजी आओ जी मेरी ख़ाला
गर्मा-गरम पकौड़े चटनी है खट्टी-मीठी
रगड़ा-मसाला खा के मुँह से निकलती सीटी
आवाज़ पपड़ियों की कानों को भा रही है
आलू की टिक्कियों की छुन-छुन लुभा रही है
छोले कमाल के हैं ख़स्ता-कचौरी खाओ
आलू मसाले वाले और भेल-पूरी खाओ
जिसने दही-बड़े और खाये न पानी-पूरी
झूठी है उसकी मस्ती और चाट भी अधूरी
होता न सब्र जिन को वो जा के चाट खाएँ
वर्ना 'अमीर' की बस ये नज़्म गुनगुनाएँ
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, नज़्म पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर नज्म हुई है। बहुत बहुत बधाई ।
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आदाब, नज़्म पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
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