१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं
दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।
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तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय
मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।
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हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है
सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।
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तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से
बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।
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जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही
कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते हैं।।
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मौलिक/अप्रकाशित
- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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