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बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं
मीनारें नफरतों  की  ये ढहती नहीं कहीं।।
*
जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा
इतिहास खोद  बस्तियाँ  मिलती नहीं कहीं।।
*
होली में कब वो  रंग  में डूबा था पूछ मत
अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।
*
मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह
आये हैं ऐसी  राह  जो  खुलती नहीं कहीं।।
*
मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें
बातें जो  वामियान  की  थमती नहीं कहीं।।
*
बाबर ढहाया तोड़ के मन्दिर बना तो क्या
उस की विचार लीला तो रुकती नहीं कहीं।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 20, 2022 at 4:55am

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।

Comment by Dayaram Methani on June 7, 2022 at 2:45pm

अति सुंदर सृजन।

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