दृश्य देखकर वृद्धाश्रम का,
रूह मेरी सिहर उठी।
क्यूं उन निर्दयी औलाद ने,
फ़र्ज़ का गला घोंट दिया।।
लाड़ प्यार से पाला जिनको,
बच्चों पर सर्वस्व लूटा दिया।
क्यों ऐसी ममता के साए को
निर्दयी औलाद ने भुला दिया।।
क्यूं कदम नहीं लड़खड़ाए उसके,
जब ऐसा उसने कृत्य किया।
क्यूं भूल गया वो उनका एहसान,
जिसने उसको अपना नाम दिया।।
आँख के तारे को बूढ़ी आँखों का ,
क्यूं दर्द दिखाई नहीं दिया।
फर्ज निभाने के समय
क्यूं फ़र्ज़ से पल्ला झाड़ लिया।।
आज जहां पर तू खड़ा ,
कल तेरा अंश खड़ा होगा।।
एक बार तो सोचा होता तूने,
ये जीवन का पहिया घूम रहा ।
"मौलिकऔर अप्रकाशित"
नीता तायल
Comment
आप सभी का बहुत बहुत आभार,ऐसे ही आगे प्रोत्साहित करते rahiyega plz
आदरणीया नीता तयाल जी नमस्ते, खुबसूरत रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया।
मुहतरमा नीता जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
अपनी रचना पर आई टिप्पणियों के जवाब दिया करें,और साथियों की पोस्ट पर भी अपने विचार दिया करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online