For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( अभी जो है वही सच है....)

(1222 1222 1222 1222)

अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में
अबद तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में

तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता
कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में

गले का दर्द सुनते हैं वो पल में ठीक करता है
महारत भी जिसे हासिल है आवाज़ें दबाने में

किसी दिन टूट जाएँगी ये चट्टानें खड़ी हैं जो
लगेगा वक़्त शीशे को हमें पत्थर बनाने में

अजब महबूब है मेरा जो पल में रुठ जाता है
महीने बीत जाते हैं मुझे उसको मनाने में

वहाँ आवाज़ में लर्ज़िश बदन भी काँपता है याँ
उधर दहशत,इधर भी ख़ौफ़ है नजदीक आने में

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on June 16, 2020 at 6:53am

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ज़रूरी इस्लाह के हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. बहुत शुक्रिया.सादर

Comment by Samar kabeer on June 15, 2020 at 6:28pm

//जब मैंने लिखा तो मेरे ज़ेहन में अज़ल के दो अर्थ थे, पहला अनंत काल और दूसरा मृत्यु या मौत.मेरे ख़याल से अज़ल  इस मिसरे में फिट बैठ रहा है.//

'अज़ल' का वही अर्थ सहीह है,जो अमीरुद्दीन जी और रवि भसीन जी,ने बताया है,और आपने भी उसे पहले नम्बर पर लिखा है ।

एक शब्द है "अजल" इस शब्द में 'ज' के नीचे नुक़्ता नहीं लगता,इसका अर्थ मौत होता है ।

// क्या सानी मिसरे मेंं  "अज़ल  " को हटाकर अबद लिख दूँ?//

आप 'अज़ल' को हटाकर "अबद" कर सकते हैं ।

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 5:35pm

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

इससे पहले कि मैं इस ग़ज़ल के मतले में ज़रूरी सुधार करुँ,जैसा कि गुणीजनों की इस्लाह है. क्या सानी मिसरे मेंं  "अज़ल  " को हटाकर अबद लिख दूँ?जब मैंने लिखा तो मेरे ज़ेहन में अज़ल के दो अर्थ थे, पहला अनंत काल और दूसरा मृत्यु या मौत.मेरे ख़याल से अज़ल  इस मिसरे में फिट बैठ रहा है. उस्ताद-ए-मुहतरम से गुजारिश है कि उचित मार्गदर्शन दें 

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 3:43pm

आदरणीय भाई रवि शुक्ला जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए ह्रदय से आभार.

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 3:41pm

आदरणीय रवि भसीन साहिब

सादर प्रणाम

सबसे पहले ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और सराहना के लिए हृदय से आभार. जब दो-दो.गुणीजनों की एक-सी प्रतिक्रिया मिल रही है  तो मतले में सुधार आवश्यक हो जाता है. मैं आपका और अमीरूद्दीन साहिब का अत्यंत आभारी हूँ जिन्होंने इस अदने से शाइर को पढ़ा और ज़रूरी इस्लाह से नवाजा. सादर.

Comment by Ravi Shukla on June 15, 2020 at 1:41pm

आदरणीय सालिक गणवीर  जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, बधाई पेश है बाकी विद्ववत  जन कह ही चुके है इस ग़ज़ल पर । बाकी शुभ शुभ । सादर 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 15, 2020 at 1:06pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, इस पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। विशेष तौर पे मतला और पहला शेर लाजवाब हैं। कृपया मतले में लफ़्ज़ 'अज़ल' पर दोबारा ग़ौर फरमाइयेगा।

अज़ल = beginning, eternity, अनादि काल, वह समय जब सृष्टि की रचना हुई
अबद = eternity, time without end, वह समय जिसका अंत न हो, अनंत


या फिर इस पर विचार कर सकते हैं:

1222  /  1222  /  1222  /  1222

अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में
सलामत कौन रहता है क़यामत तक ज़माने में

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 6:39am

आदरणीय अमीरूद्दीन ' अमीर  ' साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on June 15, 2020 at 6:32am

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और मार्गदर्शन के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. आशा करता हूँ कि निकट भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन सदैव मिलता रहेगा. सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 14, 2020 at 10:24pm

जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब।

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें।

//अज़ल तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में// 'अज़ल' के मानी आदि काल होता है जो यहाँ मौज़ूँ नहीं है। आप शायद अनन्त काल की बात कर रहे हैं जिसके लिए लफ़्ज़ "अबद" होता है। आप यहाँ अज़ल के बजाय "अबद" कह सकते हैं।

//तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता

कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में//.        इस शेअ'र के ऊला मिसरे का शिल्प कमज़ोर है इसे यूँ कर सकते हैं :

"तड़पता देख कर मुझको  सड़क पर यूंँ रुका न वो"।   सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service