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ग़ज़ल ( तिजारत कैसे की जाए.....)

1222 1222 1222 1222

तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से

मशीनें अब यहाँ पर और महंगी क्यों नहीं होंगी?
वतन में मुफ़्त ही इंसान भी मिलने लगा जब से

हमारा शह्र छोटा था मगर मिलता नहीं था वो
हमें अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गयाा जब से

समय के साथ कम होगी यही हम सोच बैठे थे
ये दूरी कम नहीं होती मिटा है फासला जब से

नयी शक्लें दिखाता था कभी जब सामने आया
नहीं जाता है कमरे में रखा है आइना जब से

सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता

बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से

बयां करना भी मुश्किल है अभी हालात ऐसे हैं
मैं सांसें ले नहीं सकता हुई ताज़ा हवा जब से

* मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on May 11, 2020 at 9:23am
आदरणीय समर कबीर साहब
1.हमारा शह्र छोटा था तो अक्सर भेंट होती थी
कभी तो लौट कर आता नयी दिल्ली गया जब से
2.सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देता
बहुत वीरान है रस्ता चला है क़ाफ़िला जब से
सर मिसरा ए सानी बदल दिया है. आप नज़रे इनायत की ज़रूरत है.
Comment by सालिक गणवीर on May 11, 2020 at 8:50am
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
शिल्प कमजोर है, अब मुझे भी यक़ीन आ गया.मैं अश'आर का सानी ही बदलने का प्रयास करता हूँ. और फिर आपको परेशान करूँगा. अब मैं सोचता हूँ ओबीओ की सदस्यता ग्रहण करने में देर क्यों लगा दी!!
Comment by Samar kabeer on May 10, 2020 at 9:17pm

'सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देते
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से'

जी,मुझे मालूम है आप किस हादिसे का ज़िक्र कर रहे हैं,मैं सिर्फ़ ये अर्ज़ कर रहा हूँ कि आप जो कहना चाहते हैं,वो शिल्प कमज़ोर होने के कारण स्पष्ट नहीं हो रहा है,ग़ौर फ़रमाएँ ।

Comment by सालिक गणवीर on May 10, 2020 at 4:33pm

आदरणीय समर कबीर साहब

आपकी इस्लाह ,सर आंखों पर.

इस शे'र पर अपनी बात कहने का दुस्साहस कर रहा हूँ. संदर्भ है रेल की पटरी पर सोलह मजदूरों का कट कर मर जाना. घर वापस आ रहे मजदूरों को सड़क पर पुलिस चलने नहीं दे रही है और जब ये रेल की पटरियों पर चलते हैं तो कट कर मर जाते हैं. इसलिए मैंने मिसरा ए सानी मेंं लिखा

नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से

इस दुर्घटना के बाद लोग पटरियों पर चलने से डरेंगे. ख़ुदा जाने इनका क्या होगा?

Comment by Samar kabeer on May 10, 2020 at 4:05pm


 //सड़क वाले शैर पर ऊला में देते की बजाय देता लिखने से शुतुरगुरबा दोष खत्म हो जाएगा या नहीं?//

'देता' करने से दोष तो निकल जायेगा,लेकिन शैर का भाव स्पष्ट करने के लिए सानी मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by सालिक गणवीर on May 10, 2020 at 3:08pm
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
आपकी क़ीमती सलाह और हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ, सड़क वाले शैर पर ऊला में देते की बजाय देता लिखने से शुतुरगुरबा दोष खत्म हो जाएगा या नहीं?कृपया बताने का कष्ट करें.
Comment by Samar kabeer on May 10, 2020 at 12:55pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'हमारा शह्र छोटा था तो अक्सर भेंट होती थी
नयी दिल्ली में होगा वो हुआ है लापता जब से'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी बदलने का प्रयास करें ।

'सड़क उसने बनाई है मगर चलने नहीं देते
नहीं चलता है पटरी पर हुआ है हादसा जब से'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,और ऊला में शुतरगुरबा दोष भी है,'उसने' एक वचन और 'देते' बहुवचन,देखियेगा ।

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