मेरा दिल वो मेरी धड़कन,
उसपे कुरबां मेरा जीवन !
मेरी दौलत मेरी चाहत
ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !
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(२)
अंग अंग में मस्ती भर दे
आलिम को दीवाना कर दे
महका देता है वो तन मन
ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन !
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(३)
मिले न गर, दुनिया रुक जाए
मिले तो जियरा खूब जलाए !
हो कैसा भी - है अनमोल,
ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !
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(४)
कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने !
वो इतिहास का सुंदर पन्ना
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !
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(५)
हरिक बेचैनी का सबब है,
उसे किसी की चिंता कब है ?
दुनिया भर के दर्द है देता
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता !
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Comment
बहुत सुन्दर ...इस तरह की मुकरियां बचपन में पढीं थीं, आज फिर याद ताजा होगयी. समसामयिक समस्याओं से इसे जोडने का प्रयास बहुत अच्छा लगा..आभार
वीनस भाई, आपने मेरी इस अदना सी कोशिश को सराहा - दिल से धन्यवाद !
भाई धर्मेद्र कुमार सिंह जी, आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है ! उत्साहवर्धन के लिए दिल से शुक्रिया !
//ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल ! अय-हय, अय-हय !!
इस सोच को मेरी विशेष बधाइयाँ. .. :-))//
अय हय हय हय हय !!! इतनी मोहब्बत से लबरेज़ आपकी टिप्पणी के लिए !!!!
मैंने बहुत बहुत बहुत पहले कुछ कह मुकरियाँ अपने परिवार में किसी से सुनी थी, इक धुंधली सी याद भर बची है,, बहुत याद करने पर भी कोई याद नहीं आई |
योगराज जी,
खूब समझ आता है कि यह छंद पढ़ने/सुनने में जितना आनंदमयी है लिखने में उतनी ही कठिन और दुरूह है
इसे हम सभी से साझा करने के लिए बधाई व आभार
सभी कह्मुकरी स्तरीय एवं बेहतरीन है. लुप्त प्राय होती इस साहित्य - विधा को सामने लाकर आपने एक महती कार्य किया है आदरणीय ........... लख - लख बधाई
बहुत बहुत बधाई योगराज जी, इतिहास रच रहा है ओबीओ, इसमें कोई संदेह नहीं
ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल ! अय-हय, अय-हय !!
इस सोच को मेरी विशेष बधाइयाँ. .. :-))
सादर.
आदरणीय सौरभ भाई जी, मैंने इस विधा में बिना विषय को बोझिल किये आज की बात कहने का प्रयास किया है ! आपने मेरे प्रयास को मान दिया, आपका ह्रदय से आभारी हूँ !
आदरणीय योगराजभाईसाहब, चूँकि हम अपने दौर के हिस्से हुआ करते हैं अतः, समसामयिक विषयों पर कुछ कहना सदा से कठिन हुआ करता है. कुछ भी कहा हुआ या तो सतहीपन और् भाषणबाजी की भेंट चढ़ जाता है या फिर, ’हम जानते हैं’ की दार्शनिकता इतनी हावी हो जाती है कि पढते ही ऊब होने लगती है. परन्तु, आपकी लेखिनी को सादर नमन कि ’कह-मुकरियों’ के शिल्प में आपने वर्त्तमान को मुखर किया है. देश, देश की समस्याओं आदि को आपने इन पाँच ’कह-मुकरियों’ में आपने की सफल कोशिश की है.
आभार.
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