भगवान किसी को लडकी न दे I लडकी दे तो उसे जवान न करे I जवान करे तो उसे खूबसूरत न बनाये I एक अदद जवान, खूबसूरत और कुमारी कन्या का खुशनसीब बाप होने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ I पहले मैं समझता था की स्वस्थ और सुन्दर लडकी का पिता होना एक गौरव की बात है I इससे न केवल उसका विवाह करने में आसानी होगी बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसे नर्तकी या अभिनेत्री भी बनाया जा सकता है और यदि उसमे कामयाबी न मिली तो किसी प्राईवेट फर्म में रिसेप्शनिस्ट का चांस तो पक्का ही है I लेकिन मेरे इन सभी सपनो पर उस समय पानी फिर गया जब जवानी की दहलीज पर कन्या के पांव रखते ही सौन्दर्य के अनगिनत पारखी किसी न किसी बहाने से मेरे घर के इर्द –गिर्द चक्कर काटने लगे I इसी के साथ उसे भरत-नाट्यम, कत्थक आदि सिखाने या टीवी सीरियल में अभिनय कराने अथवा रिसेप्शनिस्ट बनाने के मेरे सारे मंसूबे उस समय खाक में मिल गए जब रिहर्सल आदि के चक्कर में रात-रात भर उसे घर से बाहर रहने की अनुमति देने का प्रश्न मेरे सामने आया I मैं तो शायद वीमंस-लिब का समर्थक होने के कारण वैचारिक उदात्तता के रूप में मान भी जाता किन्तु मेरी घरेलू काल-भैरवी इसके लिए किसी कीमत पर भी तैयार नहीं हुयी I
निदान यह निर्णय लिया गया कि किसी तरह जोड़-तोड़ कर चट मंगनी पट व्याह वाली नीति अपनायी जाये और जैसे-तैसे कर कन्या के हाथ पीले कर उससे अपनी जान छुड़ाई जाये I किन्तु इस काम को हमने जितना आसान समझ रखा था वह वैसा नहीं था I यहाँ भी कन्या की ख़ूबसूरती हमें दांव दे गयी I लोगो का तर्क था हर सुन्दर वस्तु में एक बड़ा ऐब होता है I बहरहाल लड़के वालों के संकेत पर अलीगंज हनुमान मंदिर, बुद्धा पार्क, भूतनाथ और हनुमान सेतु से लेकर कैसरबाग़ बारादरी तक इतने चक्कर लगाए जितने शायद ही किसी हीरोइन के खुदगर्ज बाप ने प्रोड्यूसरों के घर के लगाए होंगे I मेरी इस विशाल पद-यात्रा के समक्ष गांधी जी की डांडी यात्रा बिल्कुल वाहियात थी I इतना ही नहीं कन्या के विभिन्न नवीन भंगिमाओ और पोजो के चित्र तथा मुख और देहयष्टि प्रदर्शन के अन्यान्य आयोजनों का जो भार मुझे उठाना पड़ा उसकी एक अलग ही दास्तान है I अब मुझे समझ में आ गया था कि पहले राजपूत अपनी कन्या को जन्मते ही क्यों मार डालते थे I फिलहाल कन्या का पी आर ओ बनकर पिछले पांच साल में एक्शन के जूतो से हवाई स्लीपरो तक आ गया I पर कन्या के लिया माकूल वर तलाशने में मुझे कोई सफलता नहीं मिली I कभी सौभाग्य से किसी मक्खीचूस ने कन्या पसंद की भी तो कम्पूटर और फ़ोर-व्हीलर के साथ भारी कैश की डिमांड के आगे दम तोड़ना पड़ा I
पर अहा एक दिन मेरी लाटरी लग गयी और एक काठ का उल्लू मेरे हत्थे चढ़ गया I उसने बात ही बात में मेरा बेटी को अपनी बहू बनाना स्वीकार कर लिया I मेरे लिए यह सुखद आश्चर्य था I मैंने घर जाकर आनन-फानन यह खबर श्रीमती जी को सुनायी और कहा –‘ भागवान् ! आज भगवान ने हमारी सुन ली I अपनी बिटिया के लिया ऐसा वर मिला है कि रिश्तेदार देखकर रश्क करेंगे I बड़ा ही खाता-पीता घर है I शहर में एक-दो नहीं पूरे पांच मकान है I मोटर, गाडी, बँगला सब है I नौकर चाकर हैं I कोई कमी नहीं है I हमारी बिटिया तो बस वहां राज करेगी और सबसे बड़ी बात उन्हें दान-दहेज़, रुपया-पैसा, साज-सामान कुछ नहीं चाहिए I कहते हैं भगवान् की दुआ से सब उनके पास है I उन्हें तो बस एक लक्ष्मी जैसी बहू चाहिए I’
‘अच्छा--- यह बात I ‘ - श्रीमती जी की बांछे खिल उठी –‘लड़का कैसा है , तुमने देखा ?’- उन्होंने कौतूहल से पूंछा I
‘अरे लड़का बिल्कुल हीरा है I ‘-मैंने मुस्कराते हुए कहा –‘इतना सीधा है कि गाय और गधे में फर्क करना मुश्किल हो जाये I ‘
‘हाय राम --- सच कह रहे हो ?’- श्रीमती जी ने आश्चर्य का प्रदर्शन किया –“और--- क्या बाते हुयी ज़रा ढंग से बताओ I ‘
‘मैंने साफ़ साफ़ कह दिया है की शादी के बाद आपके यहाँ कोई गैस सिलिंडर नहीं फटेगा, आग नहीं लगेगी , मेंरी बेटी आत्महत्या नहीं करेगी I मेरी बेटी से कोई नाजायज मांग नहीं होगी I उस पर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा I विधवा होने की स्थिति में जबरन सती नहीं बनाया जाएगा I ‘
‘हाय-हाय क्या कह रहे हो --? अच्छा बताओ उन्होंने क्या कहा I क्या सचमुच रूपया पैसा कुछ नहीं लेंगे?’-श्रीमती जी ने शंका प्रकट की I
‘अरे नहीं भाई, कह तो दिया I’ – मैंने समाधान करते हुए कहा –“ ये लोग वैसे नहीं है I ये साक्षात् देवता हैं I हमारी बेटी के तो भाग्य खुल गए हैं I बात पक्की समझो I मैंने तो अपनी तरफ से हाँ कह दी है I ‘
इतना कहना था की श्रीमती जी बेतहाशा भड़क उठी I झांसी की रानी की भांति उन्होंने मानो तलवार ही खींच ली और ललकारते हुए मुझसे कहा-‘खबरदार ! जो मेरी बेटी को उस चांडाल के घर फंसाया I ‘
मैं मानो आकाश से गिरा I पल भर में यह क्या हो गया I मैं अभी समझने का यत्न कर ही रहा था कि श्रीमती जी की आकाशभेदी आवाज सुनायी दी –‘वह समझता है हम उसके चंगुल में फंस जायेंगे I रुपया नहीं लेगा I पैसा नहीं लेगा I आदमी नहीं देवता है I हुंह ---‘
मैं निस्तब्ध होकर सुनता रहा I उस समय किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया था I उधर श्रीमती जी का मेघ–गर्जन जारी था –‘मैं कहती हूँ तुम्हारे दिमाग में भुस भरा है I इतनी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आती I अरे अगर वह लड़का ऐसा हे सुलक्षण होता तो अब तक कुंवारा रहता I मैं तो कहती हूँ उसमे कोई भारी ऐब है I तभी उसके बाप को कुछ नहीं चाहिएI बड़ा आया है धर्मात्मा कहीं का I मैंने उसके जैसे हजार देखे है I जाओ कह दो उसके बाप से – मुझे नहीं करनी उसके यहाँ अपनी बिटिया की शादी I हमारी बेटी भले कुंवारी रह जाए पर उस पाखंडी के यहाँ नहीं जायेगी I
श्रीमती जी इतना कहकर फफकते हुए रसोई घर में चली गयीं और मैं मौन अवाक् वहीं खडा रहा I मेरा मन मुझे सचमुच धिक्कार रहा था की आखिर इतनी सी बात मेरी समझ में क्यों नहीं आयी I
(मौलिक व् अप्रकाशित )
ई एस-१/४३६, सीतपुर रोड योजना
अलीगंज सेक्टर-ए , लखनऊ
Comment
आ० हरि प्रकाश जी
सादर आभार .
जबरदस्त सर , सुन्दर रचना ....... "मैंने मुस्कराते हुए कहा –‘इतना सीधा है कि गाय और गधे में फर्क करना मुश्किल हो जाये I "
"‘अरे अगर वह लड़का ऐसा हे सुलक्षण होता तो अब तक कुंवारा रहता !" .....हार्दिक बधाई सर !
आ० वर्मा जी
आपका शत शत आभार .
सादर.
आ० वंदना जी
आपका शत-शत आभार .
वास्तव में यही सोच है लोगों की.... यदि मांग न हो लड़का लायक तो है ? फिर भी यदि रिश्ता हो जाए तो लड़के की समझदारी को कमजोरी ही माना जाता है
सच तो यह है कि दोनों तरफ संतुलन मिल जाए तो ईश्वर की कृपा ही माननी चाहिए |
बहुत बढ़िया व्यंग्य आदरणीय गोपाल सर
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई |
आदरणीय बृजेश जी
कृपया व्यंग्य को व्यंग्य की तरह ही लें. वैसे मध्यम वर्गीय मानसिकता यही है कि अगर कोई डिमांड नहीं है तो वजह क्या है ? कहानी किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित नहीं है .अपवाद तो हर जगह होते हैं .व्यंग्य ने अगर गुदगुदाया हो तो उतना ही काफी है . पर आपकी बात भी ध्यान में रखूंगा. सादर .
आ० जीतू भैय्या
सादर आभार .
मोहन सेठी जी
देहात की स्थिति अभी भी बदतर है . सादर .
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