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२१२२/१२१२/२२ (११२)
.
उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!
.
मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,
उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!
.
मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!
.
जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,
हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!! 
.
सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,
मेरी हर बात में ख़राबी, हय!! 
.
भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,
“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!    
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

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Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. सौरभ सर. बस 9 साल ही लेट हूँ धन्यवाद ज्ञापित करने में 😁😁

Comment by Nilesh Shevgaonkar yesterday

धन्यवाद आ. आशुतोष जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2016 at 6:37pm

अय हय हय !

मतलब ये कि अबरा झूम के उमड़ा, घुमड़ा और बरसा है ! 

दाद दाद !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2016 at 4:29pm

आदरणीय नूर जी ..आपकी हर ग़ज़ल एक नए अंदाज में होती है ..आज तो आपके इस निराले अंदाज को सलाम ..ढेर सारी बधाई स्वीकार करिएँ सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2016 at 2:41pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 3, 2016 at 8:49am
मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!

अय हय क्या अंदाज़ है आ. निलेश भाई बहुत बहुत मुबारक़बाद इस ग़ज़ल के लिए।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2016 at 7:29am

शुक्रिया आ. अशोक कुमार जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2016 at 7:29am

शुक्रिया आ. राजेश दीदी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 3, 2016 at 7:29am

शुक्रिया आ. जयनीत जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 2, 2016 at 7:25pm

उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!........वाह ! वाह ! बहुत जोरदार

आदरणीय नीलेश जी सादर, खूबसूरत अंदाज लिए शानदार गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.सादर.

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