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सतविन्द्र कुमार राणा's Blog – December 2018 Archive (3)

कुण्डलिया छन्द

कुण्डलिया

जन को ढलना चाहिए, मौसम के अनुकूल

संकट होगा स्वास्थ्य पर, अगर करेंगे भूल

अगर करेंगे भूल, बात यह सही विचारो

खान-पान औ वस्त्र, सही ऋतुशः ही धारो

सतविंदर व्यवहार, सही हो रख पक्का मन

तन इसके अनुरूप, नहीं मन मौसम हो जन!

2.

जय-जय जय-जय हे अरुण!, तुम आभा भंडार

मिलती तुमसे जब किरण, तब चालित संसार

तब चालित संसार, प्रेरणा बात तुम्हारी

ऊर्जा तुमसे देव, मही अम्बर ने धारी

सतविंदर हर श्वास, सतत चलता है निर्भय

युग-युग रहो…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 24, 2018 at 7:00am — 8 Comments

कुण्डलियाँ

1

माना होता है समय, भाई रे बलवान

लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान

बनते कई महान, विचारें इसकी महता

यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता

सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना

नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना।

2

होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार

लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार

पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी

कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी

सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते

उनका चलता कार्य, खरे जो मन के…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2018 at 3:30pm — 4 Comments

हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिये- ग़ज़ल

2122 2122 212

हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिए

ठीक हो वह ध्यान पूरा चाहिए।

दर्द को भी झेलता है खेल में

दिल भी होना एक बच्चा चाहिए।

जान लेना राह को हाँ ठीक है

पर इरादा भी तो पक्का चाहिये।

टूट कर शीशा  जुड़ा है क्या कभी

टूट जाए तो न रोना चाहिए।

झूठ की बुनियाद पर है जो टिका

वो महल हमको तो कचरा चाहिए।

 विष वमन कर जो हवा दूषित करे

उस जुबाँ पर ठोस ताला चाहिए।

मौलिक एवं…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 17, 2018 at 6:30am — 10 Comments

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