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कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Blog – June 2010 Archive (7)

श्रंधान्जली

आज पिर्तु दिवस पर मै श्रधान्जली के रूप में अपना नाम ;; कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा'' रखता हूँ ,आने वाली रचनाओ में इसी नाम से आप लोग ,अपना प्यार और आशीर्वाद दें...धन्यवाद

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 20, 2010 at 2:15pm — 2 Comments

.मै इन्सान नहीं हूँ ..!!

कौन कहता है ........मै इन्सान नहीं हूँ ,

हरकतें तो वही हैं ,मतलब भगवान नहीं हूँ ॥



मन में सब दुनियावी इच्छओं का ढेर लगा है ,

सब है फिर भी मुझको भी, ९९ का फेर लगा है ॥



मन की सारी चिंताएं बिलकुल, सबके जैसी हैं ,

मेरी हैं सबसे अलग, तुम्हारी बताना कैसी है ॥



हम तो सबका भला मांगते, ऐसा मन कहता है ,

पर हमेशा अपने भले की ,दुआ ये मन करता है ॥



हूँ इन्सान पर कहता हूँ'' मै बेईमान नही हूँ '',

अगर यह सच है, तो लगता है ''इन्सान नही हूँ… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 19, 2010 at 8:01pm — 3 Comments

पल दो पल में वो मेरे दिल के..!!

इक बार क्या मिला वो ,हर दिल अज़ीज़ हो गया ,

पल दो पल में वो मेरे दिल के, करीब हो गया ॥



अनजान थे जो अब तक, उसके असरार से ,

अंजुमन में हुई जब उसकी आमद, हबीब हो गया ॥



फिजां में ना था कही पे, उसका नामोनिशां ,

है हर शख्श की जुबां पर, यही ''मेरा नसीब हो गया ॥



जो बदनामी के डर से, राहें अपनी बदल गए ,

हैं ! वो बने हम -सफर ,कुछ किस्सा अजीब हो गया ॥



जिंदगी को करीने से, सजा रखी थी हमने ''कमलेश '',

उसने दस्तक दी जब से ,दिले -मंजर बे-तरतीब हो… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 9:35pm — 4 Comments

हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ....!!!

हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ,

जिसने हिला के रख दिया ,पूरे ब्रह्माण्ड को ॥



भोपाल मे इंसानी लाशों के, अम्बार लगे थे ,

बुझ गए जीवन दिए जो, अभी-अभी जगे थे ॥



कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,

जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥



जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,

खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥



सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,

भयावह मंजर से अब भी '' उसकी… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 11:48am — 7 Comments

तब क्यों न देखा !तुमने मुझे जी भर के ॥

भीग जाती थी तेरी आँखें, मुझे याद करके ,
तब क्यों न देखा !तुमने मुझे जी भर के ॥

जब सामने थी तो न ,टिक सकी ये मुझ पर ,
अब क्यूँ करती हैं शिकवा, ये रह -रह करके ॥

इनकी उल्फत का न कोई ,सानी है इस जहाँ में ,
बसाये रखती हैं ये यादें ,अपने में मर करके ॥

कौन समझे इन आँखों की, दीवानगी को ''कमलेश ''
भीगने की अदा अता की, खुदा ने इनको जी भर के ॥

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 10, 2010 at 9:39pm — 1 Comment

इक-इक कतरे का....!!

अपने लहू के इक -इक कतरे का हिसाब चाहिए !

फंदे पर लटकते 'अफज़ल'और'कसाब'चाहिए!



जिनका बहा है खून जरा ,उनके दिल से पूछिए ,

जो देखा था आँखों ने वो , सुंदर सा ख्वाब चाहिए !



कितनी गैरत बाकि है इस देश में ,गैरों के लिये ,

क्यों ? ये मेहमान नवाजी इनकी .जवाब चाहिए !



जिंदगियोंमें जो अँधेरा किया, इन जालिमों ने ,

इनमे रोशनी भरने को, हजारों महताब चाहिए !



इनकी जड़ों को काट दो ,जहाँ से ये निकलती है ,

उन शहीदों की आत्माओं को, भी इंसाफ चाहिए… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 10, 2010 at 9:02pm — 2 Comments

आज तक ....!!! नही मिली ..

आज तक वो नही मिली ,जिसकी दरकार थी ,

झूठी निकली मेरी तमन्ना ,पीड़ मिली हार बार थी ॥



तिनका -तिनका जोड़ परिंदों ने, घर अपना बना लिया ,

ना मिला कोई मेरे घर को,वैसे इनकी भरमार थी ॥



जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,

मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे ॥



जिसको लेकर वो उलझे थे ,उनकी ग़लतफ़हमी थी ,

जिसे वो जीत समझे थे , वास्तव में उनकी हार थी ॥



''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,

जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 8, 2010 at 10:59pm — 6 Comments

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