For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा
  • patiala
  • India
Share on Facebook MySpace

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Friends

  • shekhar jha`
  • Rajendra Singh kunwar 'Fariyadhi
  • Neet Giri
  • Julie
  • Rana Pratap Singh
  • guddo dadi
  • Khushboo
  • fauzan
  • Kanchan Pandey
  • asha pandey ojha
  • Ratnesh Raman Pathak
  • Babita Gupta
  • Er. Ganesh Jee "Bagi"
  • PREETAM TIWARY(PREET)
  • Admin
 

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
patiala
Native Place
barabanki{u.p.}
Profession
govt employee
About me
simple person

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Photos

  • Add Photos
  • View All

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Blog

रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह..!!!

रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह ,
ना सच को दिखा आईने की तरह ।

ना पकड इक साख को उल्लू की मानिंद ,
वक़्त-ए-हिसाब बैठ डालों पर परिंदों की तरह ।

ना उलझा खुद को रिश्तों की जंजीरों में ,
कर ले मद-होश अपने को रिन्दों की तरह ।

ना कर हलकान खुद को ,हर तरफ है मायूसी ,
हो जा बे-दिल बे-मुरव्वत परिंदों की तरह ।

गर मिलती है इज्ज़त यहाँ ,मरने के बाद ,
फिर ‘कमलेश’क्यों जीना जिन्दों की तरह ॥

Posted on October 25, 2010 at 10:17pm — 4 Comments

किससे करूं मै बात ...!!!

किससे करूं मै बात ,उन जनाब की
जिनसे की है मुहब्बत बे-हिसाब की

दीखते नही वो दिन में ,रातें भी स्याह हुई
हुई मद्धम रोशनाई मेरी वफ़ा-ए-महताब की

किससे गिला करूं कहाँ तहरीर दूं ?
कोई ढूंढ लाये तस्वीर मेरे ख्वाब की

बिखर जाएगी शर्मो -हया इस जहाँ में
जो बरसों से हिफाजत में है हिजाब की

Posted on September 24, 2010 at 10:00pm — 2 Comments

मन की बुझी ना प्यास तेरे दीदार की...

मन की बुझी ना प्यास तेरे दीदार की

मन का था भ्रम या हद थी प्यार की ।



क्यूँ नहीं समझता ये दिल अपनी हदों कों

किया सब जो थी मेरी कूवत अख्तियार की।



जिद में क्यूँ कर बैठा तू ऐसी खता

कर दी बदनामी खुद ही अपने प्यार की ।



सुर्खरू हो जाता है तन-मन तुझे देख कर

सुध-बुध नही रही इसे अब संसार की ।



हर तमन्ना में बस तमन्ना है तेरे दीद की

कयामत की हद बना रखी है इंतजार की ।



जमाना चाहे जितने कांटे बिछा दे राहों में

'कमलेश 'जीत आखिर… Continue

Posted on September 22, 2010 at 7:30pm — 2 Comments

,हलचल मचाना चाहता हूँ ! ...

सम्वेदनाओं के शून्य को ,जगाना चाहता हूँ !

विचारो के उत्तेज से ,हलचल मचाना चाहता हूँ !



मर्म को पहचान, चोट करारी होनी चाहिए ,

बंद आँखों को नींद से ,जगाना चाहता हूँ !

…!!

खून की गर्म धारा ,बह रही ही जिस्म में ,

देश-भक्ति का इसमें ,उबाल लाना चाहता हूँ !



जज्बों में ना कमी हो तो ,समन्दर भी छोटा है ,

,आसमां में अपना तिरंगा फहराना चाहता हूँ !



कमी नही इस देश में, बौद्धिक शारीरिक बल की ,

‘कमलेश’ इसे विश्व शीर्ष पर पहुंचाना चाहता हूँ…
Continue

Posted on July 6, 2010 at 11:03pm — 1 Comment

Comment Wall (8 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:43am on February 8, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 8:07pm on June 20, 2010, asha pandey ojha said…
कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,
जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥

जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,
खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥
very tochy & emotional rhyme ...Really superb
At 8:06pm on June 20, 2010, asha pandey ojha said…
Your most welcome Kamlesh ji
At 10:16am on June 11, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
Kamlesh Bhaiya Pranam, aapney apani rachnao par daley waley comments ko moderate kar rakhaa hai, ab mujhey pata hi nahi chal paa raha hai ki mainey aap ki is rachna par comments kiya hai ki nahi,
At 10:04pm on June 9, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 9:55pm on June 8, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 6:24pm on June 8, 2010, Ratnesh Raman Pathak said…

At 5:34pm on June 8, 2010, Admin said…

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
13 minutes ago
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
11 hours ago
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
11 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service