For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Naveen Mani Tripathi's Blog (306)

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222 

बड़ी उम्मीद थी उनसे वतन को शाद रक्खेंगे ।

खबर क्या थी चमन में वो सितम आबाद रक्खेंगे ।।

है पापी पेट से रिश्ता पकौड़े बेच लेंगे हम।

मगर गद्दारियाँ तेरी हमेशा याद रक्खेंगे ।।

हमारी पीठ पर ख़ंजर चलाकर आप तो साहब ।

नये जुमले से नफ़रत की नई बुनियाद रक्खेंगे ।।

विधेयक शाहबानो सा दिये हैं फख्र से तोहफा ।

लगाकर आग वो कायम यहां उन्माद रक्खेंगे ।।

इलक्शन आ रहा है दाल गल जाए न फिर उनकी।

तरीका…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2018 at 8:06pm — 8 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122 

न जाने मुहब्बत में क्या चाहते हैं ।

जरा सी वफ़ा पर वो दिल मांगते हैं ।।

जिन्हें कुछ खबर ही नहीं दर्द क्या है ।

वही ज़ख़्म मेरा बहुत देखते हैं ।।

अगर वास्ता ही नहीं आपसे है ।

मेरा हाले दिल आप क्यूँ पूछते हैं ।।

असर चाहतों का दिखा फिर है उनका ।

अदाओं में चिलमन से जब झांकते हैं ।।

जो ठुकरा दिए थे मेरी बन्दगी को ।

मेरे घर का वो भी पता ढूढते हैं ।।

जुदाई में हमको ये तोहफ़ा…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 6, 2018 at 10:33pm — 7 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

कुछ धुंआ घर के दरीचों से उठा हो जैसे ।

फिर कोई शख्स रकीबों से जला हो जैसे ।।

खुशबू ए ख़ास बताती है पता फिर तेरा ।

तेरे गुलशन से निकलती ये सबा हो जैसे ।।

बादलों में वो छुपाता ही रहा दामन को ।

रात भर चाँद सितारों से ख़फ़ा हो जैसे ।।

जुल्म मजबूरियों के नाम लिखा जायेगा ।

बन के सुकरात कोई ज़ह्र पिया हो जैसे ।।

खैरियत पूँछ के होठों पे तबस्सुम आना ।

हाल ए दिल मेरा तुझे खूब पता हो जैसे…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2018 at 9:03pm — 14 Comments

आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में

22 22 22 22 22 2



भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।।

लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।1

महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।

दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।2

इस बस्ती में मुझको तन्हा मत छोडो ।

लुट जाते हैं लोग यहाँ वीराने में ।।3

वह भी अब रहता है खोया खोया सा ।

कुछ तो देखा है उसने दीवाने में ।।4

होश गवांकर लौटा हूँ मैख़ानों से।

जब उभरा है अक्स तेरा…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 28, 2018 at 10:50pm — 13 Comments

ग़ज़ल

लुट गयी कैसे रियासत सोचिये ।

हर तरफ़ होती फ़ज़ीहत सोचिये ।।

कुछ यकीं कर चुन लिया था आपको ।

क्यों हुई इतनी अदावत सोचिये ।।

नोट बंदी पर बहुत हल्ला रहा ।

अब कमीशन में तिज़ारत सोचिये ।।

उम्र भर पढ़कर पकौड़ा बेचना ।

दे गए कैसी नसीहत सोचिये ।।

गैर मज़हब को मिटा दें मुल्क से ।

आपकी बढ़ती हिमाक़त सोचिये ।

दाम पर बिकने लगी है मीडिया ।

आ गयी है सच पे आफत सोचिये ।।

आज गंगा फिर यहां रोती मिली ।

आप भी अपनी लियाक़त सोचिये…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 19, 2018 at 7:51pm — 9 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

इन्साफ का हिसाब लगाया करे कोई।

होता कहीं तलाक़ हलाला करे कोई।।

उनको तो अपने वोट से मतलब था दोस्तों ।

जिन्दा रखे कोई भी या मारा करे कोई।।

मजहब को नोच नोच के बाबा वो खा गया ।

बगुला भगत के भेष में धोका करे कोई ।।

लूटी गई हैं ख़ूब गरीबों की झोलियाँ ।

हम से न दूर और निवाला करे कोई ।।

सत्ता में बैठ कर वो बहुत माल खा रहा ।

यह बात भी कहीं तो उछाला करे कोई ।।

आ जाइये हुजूर जरा अब ज़मीन…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 13, 2018 at 2:20pm — 15 Comments

न कोई तिश्नगी होती न कोई हादसा होता

1222 1222 1222 1222



यहां इंसानियत से गर सभी का राबिता होता ।।

यकीनन मुल्क का यह सर नहीं झुकता मिला होता ।।1

मुहब्बत के उसूलों को अगर उसने पढ़ा होता ।

न कोई तिश्नगी होती न कोई हादसा होता ।।2

बहुत बेचैन दरिया की उसे पहचान है शायद ।

वग़रना वह समंदर तो नदी को ढूढ़ता होता ।।3

तुम्हारी शर्त को हम मान लेते बेसबब यारों।

हमें अंजामे रुसवाई अगर इतना पता होता ।।4

सियासत दां…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 7, 2018 at 2:00pm — 13 Comments

कोई दुपट्टा उड़ा रहा था

121 22 121 22

वो शख्स क्यूँ मुस्कुरा रहा था ।

जो मुद्दतों से ख़फ़ा रहा था ।।

वो चुपके चुपके नये हुनर से ।

सही निशाना लगा रहा था ।।

अदाएँ क़ातिल निगाह पैनी।

जो तीर दिल पर चला रहा था ।।

तबाह करने को मेरी हस्ती ।

कोई इरादा बना रहा था ।।

मुग़ालता है उसे यकीनन ।

नया फ़साना सुना रहा था ।।

बदलते चेहरे का रंग कुछ तो ।

तुम्हारा मक़सद बता रहा था…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 3, 2018 at 3:09pm — 12 Comments

तोड़ कर आप दिल अब किधर जाएंगे

212 212 212 212



आप जब आईने में सँवर जाएंगे ।

फिर तसव्वुर मेरे चाँद पर जाएंगे ।।1

गर इरादा हमारा सलामत रहा ।

तो सितारे जमीं पर उतर जायेंगे ।।2

आज महफ़िल में वो आएंगे बेनकाब ।

देखकर हुस्न को इक नज़र जाएंगे ।।3

आज मौसम हसीं ढल गयी शाम है ।

तोड़कर आप दिल अब किधर जाएंगे ।।4

कीजिये बेसबब और इनकार मत ।

हौसले और मेरे निखर जाएंगे ।।5

जानकर क्या करेंगे…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 30, 2018 at 6:43pm — 12 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

गुल जो सूखा किताब में देखा ।

आपको फिर से ख़्वाब में देखा ।।

बारहा चाँद की नज़ाक़त को ।

झाँक कर वह नकाब में देखा ।।

मैकदे में गया हूँ जब भी मैं ।

तेरा चेहरा शराब में देखा ।।

वस्ल जब भी लगा मुनासिब तो।

कोई हड्डी कबाब में देखा ।।

तोड़ पाता उसे भला कैसे ।

हुस्न उसका गुलाब में देखा ।।

डाल कर फूल राह में सबके ।

मैंने पत्थर जबाब में देखा ।।

लुट गईं रोटियां गरीबों…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 26, 2018 at 9:43pm — 16 Comments

आपको तो दिल जलाना आ गया

2122 2122 212

जख्म  देकर  मुस्कुराना  आ   गया ।

आपको तो दिल जलाना आ गया ।।

काफिरों  की ख़्वाहिशें  तो  देखिये ।

मस्जिदों में सर झुकाना  आ गया ।।

दे गयी बस इल्म इतना मुफलिसी ।

दोस्तों  को  आजमाना  आ  गया ।।

एक  आवारा  सा  बादल  देखकर ।

आज मौसम आशिकाना आ गया ।।

क्या  उन्हें   तन्हाइयां  डसने  लगीं ।

बा अदब  वादा…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2018 at 4:24pm — 19 Comments

दे गया दर्द कोई साथ निभाने वाला

2122 1122 1122 22

दे गया दर्द कोई साथ निभाने वाला ।

याद आएगा बहुत रूठ के जाने वाला ।।

जाने कैसा है हुनर ज़ख्म नया देता है ।

खूब शातिर है कोई तीर चलाने वाला ।।

उम्र पे ढल ही गयी मैकशी की बेताबी ।

अब तो मिलता ही नहीं पीने पिलाने वाला ।।

अब मुहब्बत पे यकीं कौन करेग़ा साहब ।

यार मिलता है यहां भूँख मिटाने वाला ।।

उसके चेहरे की ये खामोश अदा कहती है ।

कोई तूफ़ान बहुत जोर से आने वाला ।।

गम भी…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 19, 2018 at 3:56am — 11 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

नाम दिल से तेरा हटा क्या है ।

पूछते लोग माजरा क्या है ।।

नफ़रतें और बेसबब दंगे ।

आपने मुल्क को दिया क्या है ।।

अब तो कुर्सी का जिक्र मत करिए ।

आपकी बात में रखा क्या है ।।

सब उमीदें उड़ीं हवाओं में ।

अब तलक आप से मिला क्या है ।।

है गुजारिश कि आज कहिये तो ।

आपके दिल में और क्या क्या है ।।

दिल की बस्ती तबाह कर डाली ।

क्या बताऊँ तेरी ख़ता क्या…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2018 at 12:22pm — 14 Comments

तुम्हारे जख्म सहलाये गये हैं

बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।

जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।

यकीं सरकार पर जिसने किया था ।

वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।

चुनावों का अजब मौसम है यारों ।

ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।

करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।

बहुत से लोग लोग उठवाए गये हैं ।।

तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।

फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।

पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।

नये व्यापार सिखलाये…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 11:04pm — 13 Comments

ग़ज़ल

कोई शिकवा गिला नहीं होता ।

तू अगर बावफ़ा नहीं होता ।।

रंग तुम भी बदल लिए होते ।

तो ज़माना ख़फ़ा नहीं होता ।।

आजमाकर तू देख ले उसको ।

हर कोई रहनुमा नहीं होता ।।

जिंदगी जश्न मान लेता तो ।

कोई लम्हा बुरा नहीं होता ।।

कुछ तो गफ़लत हुई है फिर तुझ से।

दूर इतना खुदा नहीं होता ।।

देख तुझको मिला सुकूँ मुझको ।

कैसे कह दूं नफ़ा नहीं होता ।।

दिल जलाने की बात छुप जाती ।

गर धुंआ कुछ उठा नहीं होता ।।

गर इशारा ही आप कर देते ।

मैं कसम…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 2:15pm — 11 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122

जरूरत नहीं अब तेरी रहमतों की ।

हमें भी पता है डगर मंजिलों की ।।

है फ़ितरत हमारी बुलन्दी पे जाना ।

बहुत नींव गहरी यहाँ हौसलों की ।।

अदालत में अर्जी लगी थी हमारी ।

मग़र खो गयी इल्तिज़ा फैसलों की ।।

भटकती रहीं ख़्वाहिशें उम्र भर तक ।

दुआ कुछ रही इस तरह रहबरों की ।।

उन्हें जब हरम से मुहब्बत हुई तो ।

सदाएं बुलाती रहीं घुघरुओं की ।।

न उम्मीद रखिये वो गम बाँट लेंगे…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2018 at 9:45pm — 14 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 212

लोग कब दिल से यहाँ बेहतर मिले ।

जब मिले तब फ़ासला रखकर मिले ।।

है अजब बस्ती अमीरों की यहां ।

हर मकाँ में लोग तो बेघर मिले ।।

तज्रिबा मुझको है सापों का बहुत ।

डस गये जो नाग सब झुककर मिले ।।

कर गए खारिज़ मेरी पहचान को ।

जो तसव्वुर में मुझे शबभर मिले ।।

मैं शराफ़त की डगर पर जब चला ।

हर कदम पर उम्र भर पत्थर मिले ।।

मौत से डरना मुनासिब है नहीं…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 6, 2018 at 3:38pm — 20 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

मुद्दतों के बाद उल्फ़त में इज़ाफ़त सी लगी

। आज फिर उसकी अदा मुझको इनायत सी लगी ।।

हुस्न में बसता है रब यह बात राहत सी लगी ।

आप पर ठहरी नज़र कुछ तो इबादत सी लगी ।।

क़त्ल का तंजीम से जारी हुआ फ़तवा मगर

। हौसलों से जिंदगी अब तक सलामत सी लगी ।।

बारहा लिखता रहा जो ख़त में सारी तुहमतें ।

उम्र भर की आशिक़ी उसको शिक़ायत सी लगी ।।

मुस्कुरा कर और फिर परदे में जाना आपका ।

बस यही हरकत…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 4, 2018 at 11:03pm — 8 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

यूँ    दुपट्टा    बहुत    उड़ा   कोई ।

जाने   कैसी   चली   हवा   कोई ।।

उम्र  भर  हुस्न  की सियासत से ।

बे   मुरव्वत   छला  गया   कोई ।।

याद उसकी चुभा  गयी  नस्तर ।

दर्द   से   रात भर  जगा  कोई।।

ख़्वाहिशें इस क़दर थीं बेक़ाबू ।

फिर  नज़र  से उतर  गया  कोई ।।

वो सँवर कर गली से निकला है ।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on May 31, 2018 at 8:20pm — 4 Comments

ग़ज़ल

2121 2122 2122 212

आंसुओं के साथ कोई हादसा दे जाएगा ।

वह हमें भी हिज़्र का इक सिलसिला दे जाएगा ।



जिस शज़र को हमने सींचा था लहू की बूँद से ।

क्या खबर थी वो हमें ही फ़ासला दे जाएगा ।।

बेवफाई ,तुहमतें , इल्जाम कुछ शिकवे गिले ।

और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा ।।

क्या सितम वो कर गया मत बेवफा से पूछिए ।

वो बड़ी ही शान से मेरी ख़ता दे जाएगा ।।

फुरसतों में जी रहा है आजकल…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on May 28, 2018 at 2:00pm — 3 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
12 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service