साल पहले विद्यालय दफ्तर में
“सर, मैं अंदर आ सकती हूँ ?”
“बिल्कुल !” मि.सुरेश एक बार उस नवयुवती को ऊपर से नीचे तक देखते हैं और फिर उसकी तरफ प्रश्नसूचक निगाह से देखते हैं |
“सर ,मुझे इस स्कूल में नियुक्ति मिली है |” वो बोली
“बहुत बढ़िया !बैठो अभी प्रधानाचार्य आते हैं तो आपको ज्वाइन करवाते हैं |” प्रफुल्लतापूर्वक मि.सुरेश बोले
“वैसे कब और कहाँ से की है बी.एड.?” उन्होंने अगला सवाल किया
“इसी साल,कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से - -“उसने बड़ी सौम्यता से जवाब…
ContinueAdded by somesh kumar on March 13, 2015 at 11:18am — 17 Comments
दीवारों में दरारें-1
दीवारे और दरारें-1
“कभी सोचा था कि ऐसे भी दिन आएँगे |हम लोग इनके फंक्शन में शामिल होंगे !”मि.सुरेश ने कोलड्रिंक का सिप लेते हुए पूरे ग्रुप की तरफ प्रश्न उछाला |
“मुझे लग रहा है इस वाटिका की सिचाईं नाले के गंदे पानी से करते हैं |कैसी अज़ीब सी बदबू आ रही है !”नाक पे हाथ रखते हुए राजेश डबराल बोले |
“पैसे आ जाने से संस्कार नहीं बदलते जनाब !इन्हें तो गंदगी में रहने की आदत है|” मि.सुरेश ने जोड़ा |
“सी S S ई |किसी ने सुन लिया…
ContinueAdded by somesh kumar on March 12, 2015 at 10:30am — 11 Comments
सामने आ रे !
रात्रि-आकाश में अक्सर
तुम्हें निहारे
कहाँ छुपे हो प्रियम्वदा
होकर तारे ?
बचपन से कहते आए हैं
सब प्यारे
इस लोक से जाने वाले हो
जाते हैं तारे !
भीड़ भरे आकाश में नयन
खोज के हारें
शांतिप्रभा आर्त पुकार सुन लो
करो इशारे |
टूटता विश्वास का पुंज देख के
टूटते तारे
है व्याकुल हृदय की क्रन्दना
सामने आ रे !
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by somesh kumar on March 7, 2015 at 9:51am — 7 Comments
अभिव्यक्तियाँ
किस्से कहानी कविताएँ
सब अभिव्यक्तियाँ जीवन की
कहाँ तक साधू अपेक्षायें
गुरुजन गुणीजन की ?
मन की बेकली है
लिखने का प्रथम उदेश्शय
हो जाऊ सफल जो मानकों
पर चलूँ /दूँ गहन संदेश |
बिन पथों से डिगे
होंगी कैसे राहे प्रशस्त
नव सृजन की ?
अलंकारों से छंदों को साधना
क्या संकुचित बस यहीं तक
साहित्य की आराधना
अर्थ क्या रह जाएगा
जो ना हो इनमें
जीवन-तत्व अवशिष्ट…
ContinueAdded by somesh kumar on March 6, 2015 at 8:54am — 5 Comments
शादी की दावत-2
द्वार पर चुनमुनिया थी |
“भईया आप लोग बारात नहीं चलेंगे |उहाँ सब लोग तैयार हो गए हैं |बैंड-बाजा वाले भी आ गए हैं |सभी औरत लोग लावा लेने जा रही हैं |”
कितना बोलती है तू !क्या तू भी बारात चेलेगी ?मैंने कहा
“और क्या ?उहाँ चलकर फुलकी ,रसगुल्ला ,टिकिया खाने वाला भी तो चाहिए ना |”
“अच्छा तू चल ,हम लोग नया कपड़ा पहनकर आते हैं |”महेश भईया बोले
उसके मुड़ते ही महेश भईया ने कहा - “चलों जवानों ,कूच करते हैं |”
“मैं विद्रोह पर हूँ !शादी में…
ContinueAdded by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:30pm — 4 Comments
शादी की दावत -1
स्टेशन से सीधे हम अजय भईया के घर पहुँचे |मड़वा में स्त्रियाँ उन्हें हल्दी-उबटन मल रही थीं |बड़े बाउजी यानि की मानबहादुर सिंह परजुनियों को काम समझाने में व्यस्त थे |बीच-बीच में वे द्वार पर आ रहे मेहमानों से मिलते उनकी कुशल-खैर पूछते और आगे बढ़ जाते |
“अरे सीधे ,स्टेशन से आ रहे हो क्या ?” हमारा समान देखकर शायद उन्हें अंदाज़ा हो गया था |
“जी,हमनें आपस में बात कर ली थी |गाड़ी आने के समय में भी ज़्यादा फ़र्क नहीं था इसलिए हम सब स्टेशन पर ही - -- “बारी-बारी से…
ContinueAdded by somesh kumar on March 2, 2015 at 11:03pm — 7 Comments
बहिष्कार
“क्यों री आंनद की अम्मा ?अपनी देवरानी को शादी में नहीं बुलाईं क्या ?”निमन्त्रण पत्र पकड़ते हुए भोली की अम्मा यानि मायादेवी ने पूछा
“आपकी भी तो जेठानी लगती हैं |आपहि कौन उन्हें रामायण में बुलाई रहीं !” बिंदियादेवी ने मुँह बनाते हुए कहा
“हमार कौन सगी है,ऊपर से काम ही ऐसा करी हैं कि उन्हें बिरादरी से बहिरिया देना चाहिए |अपनी लड़की ही काबू में नहीं |पता नहीं कहाँ से मुँह काला कर आई |”
“हाँ दीदी ,सुना है चौका बाज़ार में बदरी बनिया के बेटे का काम था |जात-बिरादरी…
ContinueAdded by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:14am — 10 Comments
लोग(समीक्षार्थ गज़ल प्रयास )
मन के कितने छोटे लोग
रहते क्या-क्या ओटे लोग
गंद डालकर चिल्लाते हैं
जितने भी हैं खोटे लोग
मन की नंगाई ना छोड़ें
लड़ते पहन लंगोटे लोग
टोटे वालों को खोटा बोलें
जो हैं मन के खोटे लोग
नाक़ाबिल परवान चढ़ रहे
तब्दीले-सूरत में कोटे लोग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by somesh kumar on February 28, 2015 at 9:35pm — 9 Comments
आवाज़ का रहस्य (कहानी )
प्रशिक्षु चिकित्सक के रूप में दिनेश और मुझे कानपुर देहात के अमरौली गाँव में भेजा गया था |नया होने के कारण हमारी किसी से जान-पहचान ना थी इसलिए हमने अस्पताल के इंचार्ज से हमारे लिए आस-पास किराए पर कमरा दिलाने को कहा |उसने हमे गाँव के मुखिया से मिलवाया |
“ किराए पे तो यहाँ कमरा मिलने से रहा |तुम अजनबी भी हो और जवान भी | परिवार भी नहीं है !ऐसे में कोई गाँव वाला - - - “
“ ऐसे में ये लड़के चले जाएंगे |फिर गाँव वालों का ईलाज - - - - कितनी बार लिखने…
ContinueAdded by somesh kumar on February 20, 2015 at 11:12am — 4 Comments
“शुभम|”
“यस सर|”
“ज्ञानू|”
“यस सर|”
“दुर्योधन|”
“हाजिर सSड़|”
यूँ तो पंचम ब वर्ग का ये अंतिम नाम था |परंतु परम्परा से परे प्राचीन महाकाव्य खलनायक का स्मरण
कर और हाजिरी देने के उसके लहजे से ध्यान बरबस ही उसकी तरफ टिक गया |
“दुर्योधन मेरे पास आओ|” मैंने आदेशात्मक लहजे में कहा |
लंबे चेहरे वाला वो लड़का सकुचाता सा मेरे सामने खड़ा हो गया |मैंने अपनी तीसरी कक्षा और पंचम के छात्रों को कार्य दिया |इस बीच वो गर्दन झुकाए ,जमीन को देखता…
ContinueAdded by somesh kumar on February 19, 2015 at 10:00am — 12 Comments
समुद्र में मछली
ट्रेन से उतरकर उसने चिट को देखा और बोला –“थैंक्यू भईया |”और फिर हम दोनों पुरानी दिल्ली स्टेशन के विपरीत गेटों की तरफ सरकने लगे |मुझे दफ्तर पहुंचने की जल्दी थी|फिर भी एक बार मैंने पलटकर देखा पर स्टेशन की भीड़ में,दिल्ली के इस महासमुद्र में वो विलुप्त हो चुका था |
दफ्तर पहुंचते ही बॉस ने मुझें मेरे नए टारगेट की लिस्ट थमा दी और मैं एक सधे हुए शिकारी की तरह अपने सम्भावित कलाइन्ट्स के प्रोफाइल पढ़ते हुए निकल पड़ा |
शालनी बंसल पेशे से अध्यापिका हैं |दो साल…
ContinueAdded by somesh kumar on February 17, 2015 at 10:30am — 4 Comments
अब तक आदित्य को लगता था कि पति-पत्नी क रिश्ते में पति ज्यादा अहम होता है | उसे ज्यादा तवज्जो, मान सम्मान मिलना चाहिए | शायद इसमें उसका कोई दोष भी नही था जिस समाज में वह पला-बढ़ा वह एक पितृ-सत्तात्मक समाज है जहाँ पिता भाई व पति होना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है |माँ-बहन व पत्नी ये हमेशा निचले पायदान पर ही रही हैं, बेशक वो समाजिक तौर पर कितनी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें |
बालक के जन्म लेने पर उसके स्वागत में उत्सव और कन्या जन्म पर उदासी |बालक को हर चीज़ में तरजीह और आज़ादी जबकि…
ContinueAdded by somesh kumar on February 8, 2015 at 11:30pm — 10 Comments
“हमारी मिट्टी और जड़ों को खोद-खोदकर ये चूहे हमारे हरे-भरे टापू को उजाड़ बना देंगे और फिर कहीं और बढ़ जाएँगे I“
एक हरे-भरे पेड़ ने चिंता व्यक्त की |
“सकरात्मक सोचों ! जहाज़ के डूबने से पहले इन्होनें बहुत-कुछ खाया-पचाया है, ये हमें पौष्टिक खाद देंगे |”
प्रसन्न मुद्रा में एक अन्य पौधा बोला |
जोर का आँधी-पानी आया | कई विशालकाय वृद्ध पेड़ों की जड़े बाहर आ गईं और कुछ वहीं गिर पड़े |कुछ समय पश्चात वहाँ नई प्रजति के बीज जमने लगे, टापू पर नया बसंत आ चुका था |
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सोमेश…
ContinueAdded by somesh kumar on February 1, 2015 at 10:30am — 12 Comments
"यार,काव्य-गोष्ठी तो बहुत कर लीं पर काव्य-सम्मेलनों से बुलावा नहीं आता |"
"अरे मिट्टी के माध, अच्छी कविता लिखना–पढ़ना ही काफ़ी नहीं|"
"तो !"
"तोता बनना सीखो |"
"कैसे?"
"सज्जन के घर राम-राम |और चोर के घर-माल-माल |और फिर पाँचों अंगुलियाँ घी में | "
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:00am — 16 Comments
घिर आई है शाम
यादें भटके जंगल-जंगल
नींद गई वनवास
अच्छे दिन परदेशी ठहरे
फ़ाग मिलन की आस |
बचपन यादें गहरी रंगी
खेले-कूदे संग
यौवन की लाल चुनरिया
डूबी पीया के रंग |
नंदे-देवर निकले हरजाई
करें ठिठोली छेड़ |
माघ कली झुलस चली
आन करो ना देर |
कीरत अर्जित करते जाते
तीर्थ है किस धाम
छोड़ो-अपनाओं दिल से
जब जोड़ा है नाम |
मीरा जैसा जीवन काटा
रुक्मणी बस…
ContinueAdded by somesh kumar on January 28, 2015 at 8:50am — 10 Comments
अराजक(लघुकथा )
“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा
“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”
“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया
“नहीं!”वो मायूस हो गया
“ तो भाई पीछे जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला
“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा
“…
ContinueAdded by somesh kumar on January 26, 2015 at 6:30pm — 9 Comments
रात के ९ बजे थे |खाना खाकर विनीत बिस्तर पर लेट गया और radio-mirchi on कर दिया- “चूड़ी मजा ना देगी,/कंगन मजा ना/देगा, तेरे बगैर साजन /सावन मजा ना देगा"
तभी खिलखिलाती हुई मुग्धा ने कमरे में घुसकर ध्यान भंग किया –“ चाचा-चाचा, अदिति दीदी कुछ कहना चाहती है
“ हाँ बेटा बोल ,” विनीत ने कहा |
“ चाचा मुझे चाची के चूड़ीदान से कुछ रंग-बिरंगी चूड़ियाँ लेनी है वो सहमते हुए बोली |”
विनीत ने अदिति को देखा, एकबार आलमारी की तरफ देखा जहाँ निम्मा का चुड़ीदान रखा था | कुछ देर चुप…
ContinueAdded by somesh kumar on January 24, 2015 at 11:30am — 14 Comments
चुनावी जिन्न(कविता )
जांचे परखें और चुनें
चलों नया देश बुनें
रूढ़ परिपाटी हों छिन्न
सच्च हों ,अच्छे दिन |
ये भाषण का व्यवहार
और सतरंगी इश्तिहार
कायाकल्प हो सर्वांगीण
ना केवल चाय नमकीन |
बंद तोड़फोड़ और धरने
सियासी नफ़ा आमजन मरने
पहुंच जाएँगे बुलंदी पर
चटाकर हमें जमीन |
झाड़ू हाथी कमल हाथ
क्रांति जाति धर्म सब-साथ
एक थैली के ही चट्टे-बट्टे
देखों ना इन्हें भिन्न |
अज़ीब-अज़ीब…
ContinueAdded by somesh kumar on January 22, 2015 at 10:30am — 8 Comments
अच्छे दिन
दिखे हैं अभी इश्तिहारो में अच्छे दिन|
या सुनता हूँ बस नारों में अच्छे दिन|
सड़क पर बेचता है खिलौना अभी भी बच्चा
तेल सस्ता हुआ तो कारों के अच्छे दिन|
दिहाड़ी- मजदूर चौराहे पर खड़ा बेरोजगार
सजी दूकानें हैं तो बाजारों के अच्छे दिन|
घोटालेबाज बरी , अफसर की तब्दीली
खूब समझते हैं इशारों के अच्छे दिन|
किसान करे खुदखुशी, हाथ बस मायूसी
हैं खेत हड़पते सिसियाते अच्छे दिन|
पी. के. पर विवाद, ऍम.एस.जी पर सेंसर…
ContinueAdded by somesh kumar on January 18, 2015 at 1:31pm — 8 Comments
नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा
तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा
अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी
पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी
जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |
नाम तुम्हारे..........
गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला
बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला
जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |
नाम तुम्हारे ..........
खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी…
ContinueAdded by somesh kumar on January 13, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
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