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VIRENDER VEER MEHTA's Blog (52)

अंतरात्मा - लघुकथा

अंतरात्मा - लघुकथा

देवरानी को जलाने के अमानवीय कृत्य की एकमात्र साक्षी वही थी और ससुराल पक्ष के साथ पति भी उस पर सच न बोलने के लिए हर तरह से दबाब दे रहा था।

"देख उर्मि, तेरी एक गवाही आज ससुराल की मान मर्यादा को समाज की नज़रो में गिरा देगी और यदि ऐसा हुआ तो फिर मुझसे बुरा ....।" पति के कहे शब्द उसकी चुप्पी बन रहे थे तो अंतरात्मा उसे बेचैन कर रही थी। "नहीं उर्मि नहीं इस बार तूझे चुप नहीं......।"

"देखिये! आप जो कुछ कहे, सोच समझकर निडर हो कर कहे।" गवाही के लिए खड़ी उर्मिला को कुछ सहमे… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 26, 2015 at 8:32am — 5 Comments

तलाश - लघुकथा

"लाहोल विला कुव्वत! जाने इतनी रात गए कहां आवारगी करता फिरता है ये लड़का।" अम्मीजान की कोशिश के बाद भी जफ़र के रात दूसरे पहर घर में घुसते ही अब्बूजान की आँख खुल गयी और वो बड़बड़ाने लगे।

"कुछ गलत न करे है मेरा ज़फर, अब सारा दिन किताबो में मगजमारी करने के बाद कुछ देर दोस्तों में गुजार ले तो हर्ज ही क्या है?" अम्मी ने उसकी तरफदारी की कोशिश की।

"तो वही जाहिल लोग रह गए है दोस्ती के लिए।" अब्बु ने अम्मी पर तंज भरी नज़र डालते हुए कहा।

"अब्बु अब ऐसे भी जाहिल न है वो लोग।" ज़फ़र चुप न…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 24, 2015 at 6:30pm — 5 Comments

इंसान - लघुकथा

"इंसान"

पुरानी हवेली में छिपे आंतकियों पर सैनिक कार्यवाही की कवरेज का आदेश मिला था उसे और वो रात के घने अँधेरे में रह रह कर होने वाली फायरिंग के बीच कुछ लाइव शूट करने की कोशिश में लगा था जब उसकी नज़र किसी औरत के साथ भागने की कोशिश करते एक आंतकी पर पड़ी। और अगले ही क्षण उसकी लाइट और कैमरे की क़ैद में आने के साथ ही वो आंतकी सैनिको की गोली का शिकार हो गया। साथ वाली औरत के चीख कर जमीन पर गिरने की आवाज पर वो और सचेत हुआ और अपना कैमरा संभाल किसी तरह उस तक पहुंच गया।

एक प्रसव वेदना से कराहती… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 10, 2015 at 12:25pm — 6 Comments

झूठ - लघुकथा

" झूठ - लघुकथा "

"देख सुधा लौट आई मेरी बिन्नो।" कहते हुए माँ ने अपनी नवजात पोती को उसकी उसकी गोद में डाल दिया।

"हाँ माँ ये तो सच में पूरी बिन्नो मौसी है।" माँ की ख़ुशी में शामिल होते हुए सुधा ने मुस्करा कर अपनी भाभी सुमन की ओर देखा मानो पूछ रही हो। "बात बनी कि नहीं!"

भाभी को, ख़ुशी से झूमती माँ को एक टक देख अनायास ही उसके सामने भाभी का परेशान चेहरा अतीत में झलकने लगा। "जीजी मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं माँजी को कैसे ये 'रिपोर्ट' दिखाऊं। वो पहले ही सिर्फ 'पोते' की जिद पर अड़ी है और… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 3, 2015 at 11:42am — 6 Comments

विसर्जन - लघुकथा

"गणपति भप्पा मौर्या... अगले बरस तू जल्दी आ....।" हर प्रतिमा विसर्जन के साथ कई आवाजें उठती और इन्ही आवाजों के साथ उसके चेहरे पर कभी बच्चो जैसी खुशी झलकने लगती तो कभी चेहरा गंभीरता का आवरण ओढ़ न जाने क्या सोचने लगता?

धुंधली शाम अब रात में ढलने लगी थी लेकिन उसे अभी तक वहीं टहलते देख 'नाव वाले' से रहा नही गया। "विसर्जन तो कब का हो गया बाबा! रात हो गयी है, अब घर जाओ।"

"घर!.....कौन से घर?" बुजुर्ग ने एक गहरी सांस ली और ग॔गाजी को लहरो को देख बुदबुदाने लगा। "विसर्जन तो मेरा भी हो गया है, बस… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 26, 2015 at 4:59pm — 2 Comments

फांसी - लघुकथा

जेल की दीवारे चीख चीख कर कह रही थी कि बीती रात रहमत अली ने हाल ही में सजा काटने आये कैदी को मार डाला। लेकिन उसके माथे पर एक भी शिकन नही थी, वो तो अपनी बैरक में खामोश बैठा सोच रहा था।

"अब मिला मुझे सकूं, उसको उसके किये की सजा दे कर मैंने अपनी बीबी को ही इंसाफ नही दिया बल्कि अदालत के झुठे फैसले को भी सच कर दिया है।"

"रहमत अली। अपनी खामोशी तोड़ो और बताओ कल रात क्या हुआ?" थानेदार ने सवाल पूछते हुये उसे लगभग झिंझोड़ दिया।

"अब छोड़िये भी साहब! रात गयी बात गयी।" रहमत अली एक गहरी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 10:00am — 11 Comments

"वास्तविक पहचान"

"एक आखिरी सवाल!" साक्षात्कार लेते अधिकारी ने उसके चेहरे पर एक गहरी नजर डालते हुये कहा। "अपनी पहचान खोते हमारे 'प्राॅड्क्ट' को 'मार्केट' में बरकरार रखने के लिये तुम किस स्तर तक नीचे जा सकते हो?"

"जाहिर है जब कम्पनी मुझे इतने आकर्षक और बेहतर जीवन जीने का अवसर देने जा रही है तो उसकी पहचान कायम रखने के लिये मैं किसी भी निचले स्तर तक जा सकता हूँ।" उसने मुस्कराते हुये जवाब दिया।

"गुड! बहुत अच्छे जवाब दिये तुमने, लेकिन 'साॅरी यंगमैन'! हम तुम्हे ऐसा कोई अवसर नही दे पायेंगे क्योंकि अभी अभी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 15, 2015 at 11:08am — 9 Comments

बीती ताहि बिसार दे (लघुकथा)

"भैया ये दुनियादारी के रिश्ते निभाने से निभते है बातो से नही, ये मैं ही थी जो अब तक निभाती आयी मगर अब नही।" 'आप्रेशन' के बाद जब से भावना को होश आया उसके दिमाग में यही बात बार बार आ रही थी जो उसने दो वर्ष पहले क्रोध में आ भाई को कही थी और उसकी कही बात ने उनके रिश्ते को एक अंतहीन चुप्पी में बदल दिया था। यही नही भाई की घोर परेशानी में भी उसने अपनी जिद के चलते दोबारा भाई के घर का रूख नही किया था।

"रिपोर्टस आर नाॅर्मल भावना, डाॅक्टर ने कहा है जल्दी ही छूट्टी मिल जायेगी।" पति की आवाज ने उसकी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 10, 2015 at 10:00pm — 4 Comments

दर्द (लघुकथा)

"दामादजी को छोड़ना चाहवे है, अरे! पति बिना भी कोई जगह होवे है औरत की।" पति को छोड़ मायके आयी बेटी को माँ समझाना चाह रही थी।

"माँ! मैं कोई भी काम कर अपनी बच्ची पाल लूँगीं लेकिन अब वापिस नही जाऊँगी।"

"ये क्या कह रही है तु छोरी, ऐसा आखिर क्या हो गया?"

बस माँ। मैं 'उस नशेबाज' को और बर्दाश्त नही कर सकती, सारा दिन बस पीना, हंगामा करना और.......।"

"तो क्या हुआ छोरी, तेरा बापू न पिये, मैंने तो न छोड़ दिया उसे।" माँ ने कुछ तमक कर बेटी की बात काट…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on August 23, 2015 at 11:00am — 13 Comments

उलझन - लघुकथा

"उलझन"

"क्या करने गया था उधर मंदिर की सीढ़ियो पर!"

"अभी साल भर पहले जो हुआ शहर में, याद नही!

"हाजी का बेटा होकर काफिर वाला काम!"

"चंद रोज पहले गुजरे अपने अब्बा के नाम का भी नही सोचा।"

"इस बार तो बीचबचाव हो गया, कोई फसाद हो जाता तो!".........

सभी हमदर्द अपनी अपनी कह चल दिये और वसीम आ खड़ा हुआ अपनी उलझन लिये अब्बु की तस्वीर के सामने।

"कैसे कहूँ अब्बा मैं इन लोगो से कि कल तक मस्जिद की अजान से मोहब्बत करने वाला आज मंदिर से आती आरती की आवाज से भी प्यार करने लगा है।… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2015 at 5:34pm — 6 Comments

"श्रद्धा" - लघुकथा

"अमर! गाडी पंडितजी के घर के आगे लगाकर जरा उन्हे तनिक बाहर बुला लाओ।" सेठ जी ने अपने ड्राईवर को आज्ञा दी।......

कुछ ही क्षण बाद अमर के पीछे पंडितजी बाहर आते नजर आये। "सेठजी राधे राधे। मैं गीता पाठ कर रहा था आप के आने की बात सुन पाठ छोड़ चला आया, कहिये कैसे याद किया आपने?"

"राधे राधे पंडितजी।" सेठजी मुस्कराने लगे। "कुछ खास नही, आप के लिये कुछ वस्त्र लिये थे सोचा गुजरते हुये देता चलूँ।"

पंडितजी से 'आयुष्मान भव:' का आशिर्वाद पा सेठजी की गाडी आगे चल पड़ी। अमर 'बैक मिरर' में सेठजी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 28, 2015 at 8:00am — 13 Comments

तहजीब - लघुकथा

"अमां जफर बेटा, अपने अब्बू से न दुआ न सलाम! ये अल सुबह कहाँ भागे जा रहे हो?" खालिदा बेगम ने घर से बाहर जाते बेटे को बरामदे से ही आवाज लगायी।

"अरे अम्मीजान, मैं पहले ही 'जिम' के लिये लेट हो गया हूँ और आप......., खैर! आदाब अब्बा हुजूर।" बरामदे में ही बैठे अनवर मियां को दूर से ही हाथ हिलाकर जफर ने आदाब किया और देखते ही देखते ही नजरो से गायब हो गया।

उसकी हरकत पर खालिदा बेगम को तो हॅसी आ गयी अलबत्ता अनवर मियां पान की ग्लोरी मुँह में रखते रखते भुनभुना गये:

"लाहोल विला कुव्वत! ये…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 20, 2015 at 10:00pm — 17 Comments

ऐंजल (लघुकथा)

"चलो पापा, आज मैँ आप को शाम की सैर करवा लाती हूँ।" नन्ही तनु की बात सुनकर कई दिन से बिस्तर पर पड़े बीमार राज के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

दूर अस्त होते सूर्य की बिखरती लालिमा और शांत सुहानी शाम के साथ, बेटी के चेहरे पर बड़ो जैसा विश्वास राज को बहुत भला लग रहा था। अनायास तनु उसे लगभग खींचते हुये एक जगह ले गयी और अपनी प्यारी आवाज में बोली। "पापा पापा देखो, यही पर छोड़ गयी थी ना मुझको एक 'ऐंजल'! 'ममा' ने बताया है मुझे।"

और अचानक ही अतीत को याद कर राज की आँखे भीग गयी। "क्या हुआ पापा?"…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 11, 2015 at 7:30am — 7 Comments

हिम्मत - लघुकथा

पलक झपकते ही वो सब हो गया जो उसकी कल्पना में भी नही था। तेज गति से चलते टैम्पो में पलटते ही आग लग गयी और रोड़ पर भगदड़ मच गयी। जलती आग की ओट में घिरे उस नन्हे बच्चे को देख एकबारगी उसकी सांसे भी थम गयी।वो निशक्त सा हो गया। लेकिन बच्चे को जीवन मृत्यु के बीच झूलते देख उसने अपने अंदर की सारी शक्ति को समेटा और आग में कूद पड़ा।......

शहर भर में उसकी हिम्मत की चर्चा होने लगी। हर कोई जानना चाहता था उसकी हिम्मत, उसके जज्बे का राज।

"क्या बताऊं मैं?" रो पड़ा फूट फूट कर वो। "मेरा दस बरस का बेटा… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 2, 2015 at 8:43am — 20 Comments

"थकी हुयी सी जिन्दगी"

थकी हुयी सी जिन्दगी,

थका हुआ मुकाम है।

कौन सी जगह है ये,

हर कोई परेशान है।।

सुबह की धूप शाम है,

शाम रात सी घनी।

हवा मे क्या ये घुल रहा,

फिज़ा जहर सी बनी।

कहाँ आ गये है हम,

हर कोई हैरान है।।

अजनबी है हर कोई,

अजनबी है ये जहाँ।

मोबाईल वैब से जुडे,

दिलो के फासले यहाँ।

हर किसी का नाम है,

पर हर कोई बेनाम है।।

थकी हुयी सी जिन्दगी,

थका हुआ मुकाम है।

कौन सी जगह है ये,

हर कोई परेशान है।।



'विरेन्दर… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 28, 2015 at 9:22am — 13 Comments

वारिस - लघुकथा

रात के दूसरे पहर बड़े जेठ को साल भर पहले ही विधवा हुयी मंझली जिठानी के कमरे से निकलते देख नवविवाहित छोटी बहू सकते में आ गयी। पति के गोलमोल जवाबो से संतुष्टी नही हुयी तो अगली सुबह ही मौका देख बड़ी जिठानी के कमरे में जा पहूँची।

"जीजी! एक बात कहूं।" दबी जुबान में सारा मामला सामने रखती हुयी पूछने लगी। "मंझली जीजी के हालात की 'मजबूरी' तो मन्ने कुछ समझ भी आवे से पल इस अनर्थ को देख आप भी चुप रही, वो काहे?"

"छोटी बहू। कभी कभी शौर मचावन से ज्यादा चुप रहना जरूरी होवे से।" बड़ी जिठानी ने आॅखें… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 23, 2015 at 4:21pm — 9 Comments

कुदरत - लघुकथा

"खुदा का कहर तो खुदा का ही है पर ये सब तो हमने किया। टूटे हुए आशियाने, स्याह काले रंगों में बदलती हरियाली और उपजाऊ जमीन को बंजर करती बारूदी तबाही। आखिर दहशतगर्दी को ख़त्म करने के लिए क्या यही एक रास्ता था?" अपनी 'कमांडरशिप' में किये 'आपरेशन' के बाद इलाके को एक नज़र देखते हुए वो सोच रहा था।

इस वीरान धरती को देख, इस खेल में खुद की हिस्सेदारी के लिए, बतौर इनाम लगे तमगे भी अब उसे चुबने लगे थे। मन का बोझ जब खुद का भार सहने में नाकाम हो गया तो अश्को के रस्ते बह निकला। फलक की और देखता हुआ वो कह…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 13, 2015 at 1:01pm — 9 Comments

आठवां फेरा - कथा

"सातवां फेरा सम्पन्न हुआ, माता पिता वर-वधू को को आशीर्वाद देने के लिये आगे आये।" पंडितजी की आवाज पर बधाई गान के साथ साथ लोग भी बधाई के लिये अग्रसर होने लगे।

"नही पंडितजी। अभी एक फेरा बाकी है, आठवां फेरा।" प्रधानजी की आवाज ने सब के चेहरे प्रश्नवाचक बना दिये लेकिन प्रश्न करने की चेष्टा कोई नही कर पाया कयोंकि कस्बे के सम्मानित प्रधानजी का अनादर करने की तो कोई सोच भी नही सकता था। कुछ देर के मौन के बाद आखिर पड़ितजी ने ही प्रश्न किया। "ये क्या कह रहे है आप? सभी जानते है कि हमारे शास्त्ररो मे भी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 8, 2015 at 5:39pm — 22 Comments

कोई मांग रहा, कोई छीन रहा।

कोई मांग रहा,

कोई छीन रहा।

तेरा मेरा करता मानव,

सब पा कर भी क्यों दीन रहा।



पत्थर युग से,

मंगल युग तक।

सूरत बदली मूरत बदली,

मन से फिर भी हीन रहा।



छू ले चांद,

कई बार भले।

पर धरती की अनदेखी है,

जहां बचपन कूड़ा बीन रहा।



क्षण भर 'देवी',

फिर खेल खिलौना।

धरा गगन को रोना आया,

तू ईश होकर भी,

समाधि में ही लीन रहा।



जीत लिया जग,

बना सिकंदर।

जाते जाते अपने दो क्षण,

विश्व विजेता मुर्दो…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 2, 2015 at 7:00pm — 17 Comments

भविष्य - लघुकथा

"वकील साहब! जो चाहे करो लेकिन मेरे बेटे को सजा नही होनी चाहिये।" कहते हुये काली बाबू ने चेक बुक सामने रख दी।

"काली बाबू। मीडीया और 'एविडेन्स' भी तुम्हारे बेटे के खिलाफ है। अब तो एक ही रास्ता है 'पीड़िता' से आपके बेटे की शादी और उसकी तरफ से केस वापसी की दरख्वास्त।" वकील साहब ने ठंडी साँस भर कर हथियार डाल दिये।......................................



"लोगो की सवालिया नजरे, परिवार का मान और तुम्हारी बेटी का भविष्य। इन सबको देखा जाये तो मेरी इस 'आफर' से बेहतर कोई रास्ता नही है।"…

Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 26, 2015 at 8:30pm — 18 Comments

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