दिन में क्षण क्षण परेशान करते मीडिया तथा समाज के कटाक्ष और रात में एकाकी जीवन की भयावह राते। विलासिता की आदी हो चुकी कामना के लिए जब ये सब असहनीय हो गया तो विवश हो उसे एक ही रास्ता नज़र आया और वो उसकी ओर चल पड़ी। नशे की अत्यधिक मात्रा से अर्धचेतना में जाती कामना अतीत में खोती चली गयी।...........
"वर्षो पहले मिस मनाली का ताज पहनाते युवा विवाहित नेता मणिधर की पहचान से शुरू हुआ अनन्त इच्छाओ का आकाश कब 'लिव इन रिलेशनशिप' में बदला और कब उसने मातृत्व के सुख को पा लिया पता ही नहीं चला, लेकिन अपनी आकांशाओ की उड़ान में उसने उसे भी नकार दिया। और फिर मणिधर को अपने सपनो की सीढ़ी बनाते बनाते वो खुद ही उसकी राजनीति की सीढ़ी बन सम्बन्ध दर सम्बन्ध आगे बढ़ती चली गयी और आकांशाओ की ऊंचाई पर जा कर उसे पता लगा कि बहुत कुछ पा कर भी कुछ नहीं मिला। मिला तो एक नाम जिसे सभ्य समाज कुछ भी कहता रहे पर उसका असल मतलब एक ही निकलता था, रखैल।.........
"माँ, आँखें खोलो।" कानो में आती एक जानी पहचानी आवाज ने उसे अर्धचेतना से बाहर निकाला।
सामने युवा होता बेटा; जिसे उसने जाने कब खुद के जीवन से दूर कर दिया कर दिया था, बाहें फैलाये खड़ा था।
"माँ मेरा तेरे सिवा कोई नहीं मुझे छोड़ कर मत जाना। मैं तुम्हे लौटाने आया हूँ।"
"मुझे! जिसने तुझे नकार दिया..., मुझे जिसे सारी दुनिया......" वो नशे में बुदबुदाई।
"नहीं उसे। जिसने मुझे जन्म दिया है, उसे जिसका इंतेजार मेरे घर की छत आज भी कर रही है।"
उसकी अधखुली नम होती आँखों में अनायास ही माँ बनकर एक और आकांक्षा जन्म लेने लगी थी।
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'विरेन्दर वीर मेहता'
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी!मार्मिक लघुकथा!
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