ग़ज़ल –
गिरते गिरते संभलता रहा रात भर ,
मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर |
उसके रुखसार का चाँद दामन में था ,
चांदनी में निखरता रहा रात भर |
मुझको मंजिल नहीं बस सफ़र चाहिए ,
दो कदम चल ठहरता रहा रात भर |
गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,
आईनों में संवरता रहा रात भर |
था हकीकत या सपना यही सोचकर ,
अपनी ऊँगली कुतरता रहा रात भर |
अर्श तक मैं चढ़ा उंगलियाँ थामकर…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 18, 2013 at 5:30am — 17 Comments
भुलाए पर, यहाँ तक भी न कोई ।
Added by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:30pm — 31 Comments
Added by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:28pm — 37 Comments
ग़ज़ल -
नहीं युधिष्ठिर एक यहाँ पर ।
यक्ष छिपे हर तरफ बहत्तर ।
क्यों बैठा सीढी पर थककर ,
चल कबीर चौरा के मठ पर ।
साखी शबद सवैया गा तू ,
लोभ छोड़ अब चल दे मगहर ।
रिश्ते सारे स्वार्थ के धागे ,
झूठे हैं नातों के लश्कर ।
तुम गुडगावां के गुण गाओ ,
मेरे मन को भाता बस्तर ।
सेवक कोई रहा नहीं अब ,
सबके भीतर बैठा अफसर ।
ज्ञान की पगड़ी सर पर भारी ,
मगर ज़ुबाने जैसे नश्तर…
Added by Abhinav Arun on May 25, 2013 at 3:48pm — 14 Comments
ग़ज़ल :-
एक पर्वत और दस दस खाइयां |
हैं सतह पर सैकड़ों सच्चाइयां ।
हादसे द्योतक हैं बढ़ते ह्रास के ,
सभ्यता पर जम गयी हैं काइयाँ ।
भाषणों में नेक नीयत के निबन्ध ,
आचरण में आड़ी तिरछी पाइयाँ ।
मंदिरों के द्वार पर भिक्षुक कई ,
सच के चेहरे की उजागर झाइयाँ ।
आते ही खिचड़ी के याद आये बहुत ,
माँ तेरे हाथों के लड्डू लाइयाँ …
Added by Abhinav Arun on May 25, 2013 at 3:30pm — 22 Comments
ग़ज़ल -
कुछ होनी कुछ अनहोनी का मेला ही तो है ,
ये जीवन क्या माटी का एक ढेला ही तो है ।
साँसों की झीनी चादर पर रिश्तों के गोटे ,
भीड़ में भी होकर हर शख्स अकेला ही तो है ।
इस घर से उस घर तक जाने में रोना हँसना ,
सब कुछ गुड्डे गुड़ियों का एक खेला ही तो है ।
सुख दुःख का संगम तट ये तन और सारा जीवन ,
आशाओं उम्मीदों का एक रेला ही तो है ।
सूली ऊपर सेज पिया की छूने को तत्पर…
ContinueAdded by Abhinav Arun on May 20, 2013 at 3:58pm — 24 Comments
ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।
सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।
हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।
गुम गयीं…
Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 2:05pm — 55 Comments
Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 1:30pm — 21 Comments
लगभग आधी सदी से भोजपुरी बोली - भाषा का परचम राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर कामयाबी के साथ फहराने वाले लोक कवि पंडित हरि राम द्विवेदी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित 'भाषा पुरस्कार' प्रदान करने की घोषणा की है ।…
ContinueAdded by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:30am — 5 Comments
Added by Abhinav Arun on April 21, 2013 at 1:58pm — 18 Comments
वैसे तो ग़ज़ल का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है , परन्तु आज हिंदी जनमानस में भी ग़ज़लों ने अपनी गहरी पैठ बना ली है । ग़ालिब , मीर , फैज़ , दाग जैसे नाम आज ग़ज़ल को पसंद करने वाले के लिए अनजाने नहीं । साहित्य में भी ग़ज़लों ने नए पुराने लेखकों को अपनी और आकर्षित किया है । आज समकालीन ग़ज़ल लेखन में एक उर्जावान पीढी सक्रिय है । बनारस में नजीर बनारसी हुए तो…
ContinueAdded by Abhinav Arun on April 16, 2013 at 3:00pm — 13 Comments
दस फागुनी दोहे " 2013 "
तेरी ही खातिर सजे रंग अबीर के थाल ,
तेरे आने से हुई मेरी होली लाल ।
रंग पर्व में घुल गए इंतज़ार के रंग ,
होली सच में शोभती अपनों के ही संग ।
सरसों टेसू और पलाश हैं बसंत के दूत ,
रंग रूप से कर रहे मादकता आहूत ।
लज्जा तेरा रंग है मेरा रंग संकोच ,
ऐसे में…
Added by Abhinav Arun on March 25, 2013 at 9:30am — 14 Comments
Added by Abhinav Arun on February 22, 2013 at 9:00am — 12 Comments
Added by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 3:00pm — 16 Comments
Added by Abhinav Arun on February 9, 2013 at 3:35pm — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on December 19, 2012 at 9:48am — 28 Comments
Added by Abhinav Arun on December 19, 2012 at 9:03am — 5 Comments
Added by Abhinav Arun on September 23, 2012 at 9:30am — 18 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:41am — 10 Comments
Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:30am — 17 Comments
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