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हमने कौरव के हाथों पांचाली दी !

ग़ज़ल -

इस दुनिया ने जब भी कमाई काली दी ,

मेरे अंतरमन ने  मुझ  को   गाली दी   

   

सच्चाई के रस्ते चलता  हूँ दिन भर ,

अक्सर शामो ने है खाली थाली दी । 

 

शुकराना  हर रूखी सूखी  रोटी का ,

लड़ने की इच्छा बेहद बलशाली दी  

 

खूं से हमने सींचा अपनी माटी को ,

तब मालिक ने होली और दिवाली दी ।

 

हम सब दोषी हैं दिल्ली की घटना के ,

हमने कौरव के हाथों पांचाली दी ।

 

निज हित दड़बे  में सोये वीरों जागो ,

तुम शेरों  के मुंह में किसने जाली दी । 

 

आम आदमी से वो खास हुए पल में 

हमने जिनको सत्ता की दोनाली दी ।

 

सिस्टम ने गढ़ डाले सौ भ्रष्टाचारी ,

सहने को ये जनता भोली भाली दी । 

 

ट्वेंटी ट्वेंटी के युग में मौला मेरे ,

क्यों कंसों को इतनी लम्बी पाली दी । 

 

कुछ दोषी हममें भी हैं और हैं बेशक ,

क्यों तेरे झूठे वादों पर ताली दी ।

 

             - अभिनव अरुण 

                [21042013]

 { सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना }

 

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Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:57am

आदरणीय श्री रक्ताले जी , मेरा मानना है की एक रचनाकार ने पूरे जीवन में एक पंक्ति एक पते की बात कह दी तो वह सफल रहा और स्तुत्य है आपको कुछेक शेर पसंद आये यह मेरा सौभाग्य है , स्नेह बना रहे आदरणीय !! यही कामना है । 

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:55am

आदरणीय भावना जी , बहुत आभार रचना के अनुमोदन के लिए !!

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:54am

आदरणीय डॉ प्राची जी ! यह वैचारिकता ही मेरे भीतर तक घर कर गयी है मैं ज़माने से नहीं अपने आपसे संघर्ष रत हूँ और उसी के घर्षण से उत्पन्न हैं मेरी रचनाएँ जिनमे शिल्प और व्याकरण शायद कभी अपने पथ से विचलित हो जाए पर मैं अपनी सोच और कलम के हथियार के साथ सदा कुरुक्षेत्र में लड़ता मिलूंगा ... न जीत पाने के संदेह के साथ भी !!

Comment by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:51am

आदरणीय श्री पाठक जी आभार , आपका स्नेह के लिए !!

Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 9:37pm

खूबसूरत  गज़ल/// हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव  जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 9:03pm

सामयिक दौर में जहां उसूल कदम कदम पर दम तोड़ रहे हैं.... वहीं उच्च उच्च वैचारिकता को शब्द देती खूबसूरत सार्थक गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव अरुण जी 

Comment by भावना तिवारी on April 23, 2013 at 6:29pm

कुछ दोषी हममें भी हैं और हैं बेशक ,

क्यों तेरे झूठे वादों पर ताली दी ।.......WAH ..BAHUT SUNDAR KAHAN ...........

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 6:15pm

ट्वेंटी ट्वेंटी के युग में मौला मेरे ,

क्यों कंसों को इतनी लम्बी पाली दी । .......क्रिस गेल आपके कहे को सत्य कर ही रहा है.सरजी

बहुत सुन्दर गजल है शुरू के कुछ अशार तो बहुत ही दिल को छूने वाले है.सादर  बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अभिनव अरुण जी

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 1:51pm

आदरणीय डॉ बाली साहब आपने इतनी व्यस्तता और ऊँचाइयों पर होते हुए भी मुझ अकिंचन की रचना पढ़ी और प्रतिक्रिया दी ये मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है ... साधुवाद आदरणीय !!

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 1:49pm

अपना स्वभाव ही कुछ ऐसा बन पड़ा है आदरणीय कुंती जी , गलत होता देख और कुछ नहीं तो कुछ लिख भर देना थोडा सुकून देता है बस । बहुत शुक्रिया प्रेरक शब्दों के लिए । 

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