For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर

ग़ज़ल –

 

गिरते गिरते संभलता रहा रात भर ,

मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर |

 

उसके रुखसार का चाँद दामन में था ,

चांदनी में निखरता रहा रात भर |

 

मुझको मंजिल नहीं बस सफ़र चाहिए ,

दो कदम चल ठहरता रहा रात भर |

 

गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,

आईनों में संवरता रहा रात भर |

 

था हकीकत या सपना यही सोचकर ,

अपनी ऊँगली कुतरता रहा रात भर |

 

अर्श तक मैं चढ़ा उंगलियाँ थामकर ,

सांस रोके उतरता रहा रात भर |

 

भोर होने ने मुझमें यकीं भर दिया ,

हादसों से गुज़रता रहा रात भर |

 

शेर   तारे    ग़ज़ल चांदनी रात थी ,

मन का शायर मचलता रहा रात भर |

 

                 - अभिनव अरुण 

          (पुरानी डायरी से - १८०८२०१३ )

      * सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित - अरुण  

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 11:05am

ओबीओ मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार.. ?!! ...   ;-)))))

हाँ, यहाँ से ठुक-पिट कर वहीं.. . शायद.. .

:-)))))))))

Comment by Abhinav Arun on August 27, 2013 at 7:07am

प्रणाम श्री ..बड़े कारखाने में भेजा है ..शायद खारिज हो जाए या सुधर जाए ..शुरुआत का प्रोडक्शन है ..पर ये एक्सक्यूज नहीं मानता हूँ ..मताए कूचा ओ बाज़ार में सब ठीक ठाक ठुका-पिता होना ही चाहिए ..वज़न लिखने वाली बात से सहमत हूँ ..अमल होगा !! सादर प्रणाम के साथ - अभिनव 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 5:03pm

पेटी की चाभी नहीं हेरायी.. आय-हाय !  यह कम बडी बात नहीं है. :-))))

काफ़िया निर्धारण को पुनः देख लीजियेगा, भाईजी.

ग़ज़ल के अशार सुभानअल्लाह ! पलकों को खूब आईना बनाया है. वाह वाह.. .

इस मंच पर हम मिसरों के वज़्न लिख देने की परंपरा विकसित करें. यथा, २१२२१२२१२२१२

शुभ-शुभ

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 26, 2013 at 7:18am
Bahut khoob..Abhinav ji
Comment by Abhinav Arun on August 25, 2013 at 7:16pm

ग़ज़ल आपको पसंद आई बहुत शुक्रिया आदरणीया मंजरी जी , आपकी सराहना मेरे लिए महत्वपूर्ण है !! 

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 4:35pm

   प्यारी सी ओस से नहाई हुई सी गज़ल .  बधाईयां 

   

गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,

आईनों में संवरता रहा रात भर |  

शेर   तारे    ग़ज़ल चांदनी रात थी ,

मन का शायर मचलता रहा रात भर |

   

Comment by Abhinav Arun on August 22, 2013 at 7:14pm

परम आदरणीय आपके आशीष पाकर धन्य हुआ बहुत आभार आप्प्का !!

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 6:42am

बहुत ही खूबसूरत अश’आर हैं।

बधाई, आदरणीय अभिनव जी।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:15am

आ. डॉ प्राची जी ! इधर बारह -पंद्रह साल से लिखी ग़ज़लों की मरम्मत का काम चल रहा है .. कुछ पढाई के दिनों की शुरुआती ग़ज़लें हैं ,, उन्ही में से एक - दो इधर पोस्ट की हैं ... आपको पसंद आई शेयर करना सार्थक रहा | ...दौरे हाज़िर ने ऐसे मंज़र दिखाए की बस अब सियासी सामाजिक विषयों पर लिखना ज्यादा ज़रूरी और समीचीन प्रतीत होता है |

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:11am

शुक्रिया आ. शुभ्रा जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service