For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता - तख्तियां !

टूटा दूर दिल्ली के क्षितिज पर 
एक खूबसूरत तारा 
सबने मन्नतें मांगी 
कुछ टूटने से दुखी हुए 
हम भी 
कुछ ने शीशे सी चमकती सडको पर 
अट्टालिकाओं के साए में 
जुलूस निकाले 
मोमबत्तियां जलाईं 
असरदार नारों की तख्तियां लहरायीं 
चैनलो पर प्राइम टाइम में 
सुनी और देखी गयीं उनकी चिल्लाहटें 
प्रायोजनों के साथ 
संसद तक में टपक पड़े आंसू 
और दूर एक छोटे शहर के 
छोटे से मोहल्ले के 
छोटे अँधेरे कमरे में 
सिसकती साँसों का दम
दीवार के बाहर तक रहा अनसुना 
कहीं कोई खबर नहीं छपी 
हमारे स्पंदन में नहीं आया कोई बदलाव 
संसद क्या नुक्कड़ पर भी ये नहीं बना 
चर्चा का विषय 
घर में ही गुमसुम सा रहा ये मुद्दा 
हो गया ख़ुदकुशी का शिकार 
वो साँसे आज भी रोज़मर्रा सी ही 
आती जाती देखती हैं
हमारी व्यवस्था और हमारे समाज को 
एक उपहास दृष्टि के साथ 
क्योंकि नियति ने लिख रखी हैं 
उसकी तमाम तमाम रोटियाँ 
उन्हीं हाथों में 
और उसका कुचलना भी 
हम आज कितना आगे निकल आये हैं 
आई फोन के युग में 
जहां एक बटन पर दौड़े चले आते हैं अनेक 
किसी की मदद को हूटर बजाते 
लाल नीली बत्तियां जलाते 
सौ कैमरों और सौ खबरजीवियों के लश्कर के साथ 
किन्तु पगडंडियों को मोहताज 
खामोश खलिहानों सीवानों ओसारों
डेरों और चुहानियों के देश में 
आज भी बुझ जाती है
शाम से पहले ही उम्मोदों की ढिबरी 
आँगन में पसर जाता है 
सफ़ेद पोश संस्कृतियों का रक्षक 
नैतिकता की सपाट छाती के ऊपर ।
 
                       - अभिनव अरुण 
                          {19122012}
 
 

Views: 349

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 24, 2012 at 9:24pm

आदरणीय अरुण 'अभिनव' जी वाह बहुत सुंदरता से सरकार और समाज के बीच कि विसंगति को उभरा है हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Abhinav Arun on December 21, 2012 at 3:03pm

आदरणीय श्री सौरभ जी , आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए उर्जा का  स्रोत है । बहुत बहुत आभारी हूँ !

Comment by Abhinav Arun on December 21, 2012 at 3:02pm

  आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना में उल्लिखित भावो को अपने पसंद किया हार्दिक आभार आपका !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 12:40am

जाने कितनी ही काली रातों की कलिमा में कितने ही भाग्यहीन सितारे टूट कर या तो विलीन ज़िन्दग़ी जीते रहते हैं, या सबल पंजों के हत्थे चढ़ अपने होने के मायनों पर लगातार सिर धुनते रहते हैं. इन्हीं बेचारों की भाग्यहीनता के कारण रात के अंधकार और दिन के उजाले में फ़र्क़ करना सीखा जाता है. ऐसे सितारों की दशा पर आपने मरहम लगा कर रचनाधर्मिता का निर्वहन किया है, भाई अरुण अभिनवजी.

इस कविता के लिए हार्दिक धन्यवाद व शुभकामनाएँ .. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 19, 2012 at 11:19am

 दुखद है बहुत जो आहें ,आंसूं उस एकांत भयावह सन्नाटों में अविरल बह रहे हैं उसकी कोई चर्चा नहीं कोई कुछ भी करे उनकी व्यथा कोई नहीं हर सकता कोई उनके घावों पर मरहम भी किस मुख से लगाए बहुत मार्मिक चिंतनीय पोस्ट हेतु आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service