अँधेरा हो गया था
मेले से लौटने में
जब बैलगाड़ी के पहिये में
फंस गया था
मेरी बेटी का दुपट्टा
जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ
कसता गया
मेरी बेटी के गले में
और तब गया सबका ध्यान
जब घुटी -घुटी सी चीख
निकली उसके मुख से
हठात बैलों की लगाम
खींची गाडीवान ने
और बैल पैर उठाकर
पीछे की और धसके
पहिये में फंसे दुपट्टे को
आहिस्ता से निकाल कर
छुड़ाया गया उसका गला
उस काल-फंद…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments
गाँव में था
एक भवानी का चौतरा
कच्ची माटी का बना
जिसके पार्श्व में लहराता था ताल
जिसके किनारे था एक देवी विग्रह
छोटा सा
चबूतरे को फोड़कर बीच से
निकला था कभी एक वट वृक्ष
जो विशाल था अब इतना
कि आच्छादित करता था
पूरे चबूतरे को
साथ ही देवी विग्रह को भी
अपने प्रशस्त पत्तों की
घनीभूत छाया से
और लटकते थे
इसकी शाखाओं से अरुणिम फल
फूटते थे
शत-शत प्राप-जड़…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
आकाश से
गिरती है बिजली
और एक हरा भरा पेड़
अचानक बदल जाता है
एक काले ठूंठ में
भीतर तक
किसी काम नहीं आती
वह जली लकड़ी
सिवाय सुलगने के
धुवां छोड़ने के
अपने अंतिम सांस तक
और रह जाता है एक
अलिखित शिलालेख
ध्वंस का इतिहास समेटे
मौन स्तब्ध उदास जड़
निर्जीव
हमारे पूर्वज
लीपते थे गोबर से
माटी के घर
और उसकी दीवारें
क्योंकि वह मानते…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2016 at 6:09pm — 4 Comments
ओ मेरे आकाश !
पिता थे तुम
असीम अपरिमाप
सितारों की पहुँच से भी दूर
और मैं पर्वत की भाँति बौना
अपने उठान का अभिमान लिए
तब नहीं जानता था
यह फर्क
जब तुम मेरे पास थे
अनंत विस्तार लिए
भले ही
आज बन जाऊं मैं ऊंचा
चोमोलुंगमा
यानि कि सागरमाथा
दुनियां का सर्वोच्च हिमशिखर
एवरेस्ट ---
ओ मेरे आकाश !
सदा ही रहोगे तुम
अनंत ऊँचाइयों पर
ऊंचे और उन्नत
कई-कई…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
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