सात नदियाँ मिलती हैं
गुजरात के कच्छ में
समुद्र से
उस स्थल पर
जिसे ‘रण’ कहते है
और जहां सबसे खारा होता है
समुद्र का पानी
नमक बनाने के लिए
जिसे हम लवण भी कहते है
और इसी से बनता है
एक मोहक शब्द
लावण्य
जो प्रकट करता है
मनुष्य के जीवन और उसके रंगों में
नमक की महत्ता, उपादेयता और स्वाद
पर
कभी किसी ने सोचा है गोर्की की भाँति
कि किस संत्रास में जीते है
नमक…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 8:00pm — 7 Comments
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इंसानी फितरत के जलवे दिन ये कैसे आये हैं
सन्नाटा गलियों में छाया संगीनों के साये हैं
चप्पे-चप्पे पर दिखता है आतुर सैनिक का पहरा
धरती की रक्षा करने की शत-शत कसमे खाये हैं
कुछ तो अजगुत कहता है यह सघन सुरक्षा का घेरा
क्या फिर से तारामंडल में घन संकट के छाये हैं
पोथी लेकर भोली बाला घूम रही वीराने में
अक्षर ने शब्दों से मिल कर गीत सुहाने गाये हैं
खौल रहा है खून वतन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 19, 2016 at 7:27pm — 4 Comments
रात के सन्नाटे में
कहते हैं
आज भी रोती है वह नदी
जिन्होंने भारत में
पूर्व से पश्चिम की ओर
ऊंचाइयों पर
पथरीले कगारों के बीच से
बहती उस एक मात्र पावन चिर-कुमारिका
नदी का आर्तनाद कभी सुना है
जिन्होंने की है कभी उसकी
दारुण परिक्रमा
जो विश्व में
केवल इसी एक नदी की होती है ,
हुयी है और आगे होगी भी
वे विश्वास से कहते है -
‘इस नदी में नहीं सुनायी देती
रात में…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2016 at 8:00pm — 11 Comments
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