कर्म के ही हल सदा रखती है कन्धों पे नियति
Added by ajay sharma on November 26, 2012 at 12:00am — 3 Comments
तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /
Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments
मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया
तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"
झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया
छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया
मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया
Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
सिमट के रह गयी किताबों में ज़रुरत मेरे बच्चों की
लूट के ले गयीं ये तालिमें फुर्सत मेरे बच्चों की
खेल खिलौनें सैर सपाटें किताबों की बातें हैं
दुबक के रह गयी दीवारों में ज़न्नत मेरे बच्चों की
पकड़ के अँगुली जब वो मेरी मुझसे आगे आगे चलते
मुझको भली लगती है ऐसी हरकत मेरे बच्चों की
मेरी उम्र का बोझ उठाये नन्हे नन्हे कन्धों पर
कहने को मासूम दिखे है हिम्मत मेरे बच्चों की
Added by ajay sharma on November 14, 2012 at 10:30pm — 2 Comments
बौने अब आसमान हो गए ,
कौए हंस सामान हो गए
जिसको देख आइना डरता था पहले
अब वे देखो दर्पण के अरमान हो गए
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जिन्हें तनिक से हवा लगे तो ,…
Added by ajay sharma on November 13, 2012 at 11:00pm — No Comments
आग का दरिया नंगो पैरों करना पार कहाँ तक अच्छा
Added by ajay sharma on November 7, 2012 at 7:00pm — 1 Comment
सबसे मिलना तो इक बहाना है
कौन अपना है अजमाना है
मै कोई ख्वाब आँखों में सजाता ही नहीं
इल्म होता जो बिखर जाना है
Added by ajay sharma on November 3, 2012 at 11:00pm — 3 Comments
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