Added by Veerendra Jain on October 30, 2010 at 5:30pm — 3 Comments
Added by Abhinav Arun on October 30, 2010 at 3:24pm — 12 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 29, 2010 at 9:00am — 1 Comment
Added by Saurabh Pandey on October 28, 2010 at 6:00am — 3 Comments
चातक मन प्यासा फिरे, दोनों आँखें मूँद .
पियूँ-पियूँ रटता रहे, पिए न एको बूँद ...
प्यास कैसे बुझ पाय ?
मन की मन में रह जाय...
रूठा आज गुलाब है, मधुकर है बेचैन
भूली सारी गायकी,कटे न काटे रैन
कहाँ बोलो अब जाय..
प्रीति को कैसे पाय?
स्वाति टपके सीप में, मोती सी बन जाय
रेत,पंक में जा गिरे , तो दलदल ही कहलाय
संग का असर न जाय
कोई कैसे समझाय ?
मंहगाई सुरसा भई, अतिथि हुए हनुमान...
सुरसा-मुख घटना नहीं,तुम्ही घटो मेहमान...
कोई अब क्या…
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 10:30pm — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on October 22, 2010 at 1:30am — 4 Comments
Added by Shashi Ranjan Mishra on October 21, 2010 at 8:28pm — 11 Comments
Added by Dr Nutan on October 21, 2010 at 5:30pm — 5 Comments
Added by विवेक मिश्र on October 21, 2010 at 1:00pm — 10 Comments
Added by Veerendra Jain on October 20, 2010 at 1:08am — 9 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 11:30pm — 1 Comment
कोहरे से और बर्फ से, मिला हवा ने हाथ!
अबकी जाड़े में दिया, फिर सूरज को मात !! १
काँप रहा है भीति से, लोक तंत्र का बाघ!
संबंधों में शीत है, और फिजां में आग !!२
रिश्ते नातों में लगा, शीतलता का दाग !
काँप रही है देखिये, कैसे थर-थर आग !!३
फिर पतझड़ की याद में, वृक्ष हो गए म्लान!
छेड़ रहे हैं रात भर, दर्द भरी एक तान !!४
धूप भली लगती कहाँ, याद आ रही रात !
ऊष्ण वस्त्र तो हैं नहीं होना है हिमपात !!५
पहरा देती है हवा,…
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 15, 2010 at 11:00pm — 4 Comments
Added by Julie on October 15, 2010 at 10:30pm — 17 Comments
Added by moin shamsi on October 12, 2010 at 5:25pm — 8 Comments
Added by Hilal Badayuni on October 11, 2010 at 11:00pm — 5 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 6, 2010 at 9:11am — 1 Comment
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